Art By : Aakanksha Nanda |
दोस्ती में किए उसके हर प्रयास का
मैंने दिल से सम्मान किया।
फिर इक दिन उसने हमारे
इस रिश्ते को प्यार का नाम दिया।
उसके इन वादों से
क्या अपना मुख मोड़ लूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ?
मेरे उस टूटे दिल के शव को
मैं दफना नहीं पाऊँगी।
कितनी भी कोशिश कर लूँ उसे मैं
अपना नहीं पाऊँगी।
क्या उसे समझाने की
नाकाम कोशिश पर जोर दूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ?
अब अजीब उदासी में
वो बिखरा रोज़ लगता है।
अब उसका मेरी परवाह करना,
मुझको बोझ लगता है।
विश्वास और चाहत को क्या
नफ़रत से जोड़ दूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ?
आज भी मुसीबत में रहूँ अगर मैं,
तो वो फ़ौरन चला आता है।
और मेरी खुशियों पर वो
अधिकार नहीं जताता है।
नयी भोर की इस, चमक के समक्ष,
क्या काला साया ओढ़ लूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ?
पर उसे तड़पता हुआ भला मैं
कैसे देख पाऊँगी?
उसकी सावली आँखों से मैं
कैसे नज़र मिलाउँगी?
दोस्ती और प्यार के दरमियाँ
क्या उसका साथ छोड़ दूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ?
क्या उसका दिल तोड़ दूँ...... ?
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
06/07/2018
04:12:11 PM
As brilliant as always
ReplyDeleteThanks bhai😊😊
DeleteWhat a brilliant mind u have bro..really inspiring Nd ur thinking r just mesmerizing
ReplyDeleteThanks Abhilash😉😊
Deleteरात मे सूरज भी थक के चूर होता है,
Deleteकभी हालात ऐसे भी होते है कि इंसान भी मजबूर होता है,
धरती मे फरिस्ते चाहे हो न हो,
एक दीपक जैसे खोनिनूर भी होता है।
Waah waah kya baat hai😂
DeleteU expressed the exact feeling one can have at that thin line between love and friendship... Great piece ... Keep writing 😊😊😊
ReplyDeleteThanks a lot Upasna... 💝💝
ReplyDeleteI am glad that you liked it 😇
Bahut khub yaar. . Bahut hi sundar se tumne shabd ko peeroya hai... Aise hi likhte rho mere kavi... ❤❤❤
ReplyDeleteThanks a lot manu😉😉
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