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Showing posts from August, 2022

कुर्बत

जाते हुए हमेशा तुम कसकर गले लगाती हो,  अपना कुछ हिस्सा तुम मुझमें छोड़ जाती हो… वैसे तो सब मुझे शरीफ समझते हैं मगर,  तुम दोस्तों के सामने मेरा भंडाफोड़ जाती हो...  दूर रहने से वैसे कोई गिला नहीं मगर,  तुम फोन नहीं उठाती हो और दिल तोड़ जाती हो...  इतनी प्यारी सी हो तुमसे गुस्सा करें कैसे  तुम मुस्कराती हो और नाता जोड़ जाती हो...  जब भी गलत दिशा में मैं आगे बढ़ने लगता हूँ,  हाथ पकड़कर मेरा तुम रस्ता मोड़ जाती हो… मैं हर बार जब तुमसे मिलने आता हूँ,  तुम दूर से ही देख कर हँसकर दौड़ जाती हो...   जाते हुए हमेशा तुम कसकर गले लगाती हो,  अपना कुछ हिस्सा तुम मुझमें छोड़ जाती हो...  -दीपक कुमार साहू  30th August 2022 11 50 PM

Shayari No. 74

  मैं रोज सुबह उठकर बिस्तर पर तुम्हें खोजता हूँ,, जैसे किसी रोते बच्चे को तलब हो अपनी माँ की..