Skip to main content

Posts

Showing posts from 2023

Kuch bhi nahi

शब्दार्थ   महताब - चाँद, रुखसार - गाल, चारा-साज़ - डॉक्टर, जॉन - Jaun Elia कुछ भी नहीं  ईद का महताब उसके रुखसार के अलावा कुछ भी नहीं  और मेरे प्यार में, इंतज़ार के अलावा कुछ भी नहीं... उसे देखा तो जाना कि, परियों की दुनियाँ सच्ची है,, मैं तो मानता था, ब्राह्मण में इस संसार के अलावा कुछ भी नहीं... वो एक बार देख लेती है और मैं मर जाता हूँ,, आँखें उसकी सच बोलूँ, एक हथियार के अलावा कुछ भी नहीं... सुबह होती है और मैं सपने भूल जाता हूँ,, याद बस उसकी पायल की झनकार के अलावा कुछ भी नहीं... मेरे दिल के घर को बस तुमने ही हथियाया है,,  और मैं तेरे दिल के किराए-दार के अलावा कुछ भी नहीं... तू कहानी है मेरी... तू मेरी जिंदगी है...  मैं तेरी जिंदगी में एक किरदार के अलावा कुछ भी नहीं...  उसे जो पसंद है वो तोहफे महंगे आते हैं,, और मेरे जेब में रुपये चार के अलावा कुछ भी नहीं... मुझे खुद से मेहनत करना है और जग में आगे बढ़ना है,, विरासत में मिला मुझे संस्कार के अलावा कुछ भी नहीं... मैंने भी कमाएं हैं जिंदगी में कुछ ऐसे रिश्ते,, कि दौलत के नाम पर दो यार के अलावा कुछ भी नहीं... सब की उम्मीदें मुझसे थी क्यूँक

Shabdo ka Sahara

  अगर मेरा महबूब इतना प्यारा ना होता, हर बाजी जितने वाला लड़का दिल हरा ना होता। उससे बात करने की कभी हिम्मत नहीं होती, पता पूछने को उसने अगर पुकारा ना होता। दो बिल्कुल जुदा लोग कभी प्यार में ना पड़ते,  अगर ईश्वर का इसमे कोई इशारा ना होता।  हम दोनों साथ में इतने खुश नजर नहीं आते तो,  लोगों में चर्चा फिर हमारा ना होता।  कॉलेज की आखिरी दिवाली रोशन ही ना होती अगर साड़ी पहन कर तुमने खुदको संवारा ना होता। झुकी नजर वाली तेरी तस्वीर और भी सुंदर आती  अगर काली बिंदी माथे से तुमने उतारा ना होता। तेरे पास रहने पर तो मैं भी खिल उठता हूँ, तेरे बगैर खूबसूरत कोई नजारा ना होता। जुदा होने में कितना दर्द है ये खबर ही ना होती अगर,  वो आखिरी शाम मेरे संग तुमने गुजारा ना होता।  सालों हमने साथ साथ एक ही कश्ती में सफर किया,  काश हमारा अलग - अलग किनारा ना होता।  होती मेरे रुबरु तो आँखों में पढ़ लेती तुम,  फिर काग़ज़ कलम और शब्दों का सहारा ना होता।  -दीपक कुमार साहू  6th March 2023 12: 37 AM

Jee kar koi mar jata hai...

जी कर कोई मर जाता है... प्यार का रंग महबूब पे कुछ ऐसा कर जाता है,  हर बार उसमें हमको नया गुलिस्तां नजर आता है...  होने को तैय्यार वो वक्त नहीं लगाती,  हँसती है वो और चेहरा संवर जाता है...  कहते हैं लोग कि जिंदगी तेज चलती है,  वो आती है सामने और आलम ठहर जाता है...  कान पकड़ते हैं लोग उस्तादों का नाम लेके  तेरा नाम लेता हूँ और हाथ दिल पर जाता है...   कृष्ण के मुख में होगा ये ब्रह्मांड मगर,  आँखों में तेरी मुझे दुनियाँ नज़र आता है...  रातों को जगना इतना भी मुश्किल नहीं,  मैं तकता हूँ तेरी तस्वीर, और सहर हो जाता है...  दोस्तों को मालूम है मुझको कैसे छेड़ा जाए,  वो लेते हैं नाम तेरा, मेरा चेहरा निखर जाता है...  मैं भी अपने चाँद को तारे देना चाहता हूँ,  पर टूटता है तारा तो टूटकर किधर जाता है?  वो तो मुझको कहती है कि "बड़े बदमाश हो गए हो"  पर मैंने सुना था मोहब्बत कर लो, बंदा सुधर जाता है...  बाजार में उसके पीछे, कभी इस दुकां कभी उस दुकां जैसे माँ का पल्लू पकड़े बच्चा,  कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है...  उसके आने से पहले का वक़्त काटे नहीं कटता है,  मैं पूछता हूँ दिन कैसा गया? और