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Showing posts from June, 2018

कौन कहता है?

कौन कहता है?  Art By : Ananya Behera Art By : Ananya Behera  कौन कहता है वो पत्थर की बनी है?  पिघल जाएगी, दिल की बातें कह कर तो देखो।  कौन कहता है मंज़िल, सफर से बड़ी है?  एक बार उसके संग, बह कर तो देखो।  कौन कहता है वो प्यार जताती नहीं?  दो पल संग उसके, बीताकर तो देखो।  कौन कहता है वो किसी को अपनाती नहीं?  दिल के गिले - शिकवे, मिटाकर तो देखो।  कौन कहता है वो दुर्गा हो नहीं सकती?  उसके गुस्से को कभी संभालकर तो देखो।  कौन कहता है मोहब्बत हो नहीं सकती?  उसके आँखों में आँखें डालकर तो देखो।  कौन कहता है कुछ भी मुश्किल नहीं है?  वो रूठे तो एक दफा, मनाकर तो देखो।  कौन कहता है उसे कुछ भाता नहीं है?  उसके लिए एक कविता बनाकर तो देखो।  कौन कहता है वो किसी से झगड़ती नहीं है?  उसके सामने, मेरी बुराई करके तो देखो।  कौन कहता है मासूमियत अब दिखती नहीं है?  नींद से उठकर उस जैसी अंगड़ाई भरके तो देखो।  कौन कहता है अब बारिश होती नहीं है?  एक दफा उसको, रुलाकर तो देखो।  कौन कहता है अब फूल खिलते नहीं हैं?  यूँ-ही बेवजह उसे हँसाकर तो देखो।

टाईम नहीं है

टाईम नहीं है Shot By : Preet Tripathy  Introduction : इस आधुनिक और शहरी जीवन में शांति का सूरज अस्त हो गया है। अनोखी बात है कि, नवजवान से लेकर बच्चा - बच्चा व्यस्त हो गया है। मोह माया ने हर किसी को जड़ से पकड़ा हुआ है। मानव हर क्षण समय के जंजीर में जकड़ा हुआ है। आज किसी को किसी के लिए वक़्त नहीं है। मानो हाड़ - मांस का पुतला हो मानव लेकिन उसमे रक्त नहीं है। Shot By : Preet Tripathy  Art By : Amrita Pattnaik Poem : पिता को अपने जान के लिए, अपने ही संतान के लिए, टाईम नहीं है। बच्चों को खेलने के लिए, रिश्तेदारों से मिलने के लिए, टाईम नहीं है। बहन को रुलाने के लिए, पेट भर खाने के लिए, टाईम नहीं है। छोटे बड़े सपनों के लिए, अपनों को अपनों के लिए, टाईम नहीं है। रात को तारे गिनने के लिए, प्यार के स्वेटर बुनने के लिए, टाईम नहीं है। परिवार को हँसाने के लिए, मकान को घर बनाने के लिए, टाईम नहीं है। अब आम तोड़ने के लिए, छत पर चाँदनी बटोरने के लिए, टाईम नहीं है। सो कर रात काटने के लिए, खुशियाँ और गम बाँटने क

पत्थर की मूरत

Art By : Ananya Behera  कुछ दिनों बाद मेरे परीक्षा का परिणाम आना था। और मुझे मंदिर में, अच्छे नंबर के लिए भीख माँगने जाना था। पूजा के लिए फूल चुराए पड़ोसी के आँगन से। प्रसाद खरीदा मैंने पूरे रुपए इक्यावन के। किस विषय में कितने नंबर माँगू, इस विचार में, मैं इतना घुल गया। कि जल्दी - जल्दी में घुसने से पहले, जूते उतारना भूल गया। क्रोधित पंडित ने कहा : “ये सीढ़ियाँ वापस उतर जाओ और उस पत्थर पर जूते उतारकर आओ” मैंने देखा कि हर कोई, बाहर पड़े पत्थर पर जूते उतार रहा है। तो अंदर पड़े पत्थर की आरती उतार रहा है। मैंने मन में तभी अचानक एक प्रश्न आया यूँ। कि दो समान रंग और किस्म के पत्थरों में, इतना भेदभाव क्यूँ? फिर कही से आवाज आई : "जिस कारण की तुझे इतनी आस है, उस सवाल का जवाब केवल मेरे पास है” मैंने अपनी नज़र दौड़ाई चारों ओर। तो पता चला कि उस पत्थर ने मचाया था शोर। पत्थर ने कहा :- अगर जानना है तुझे जवाब अपने सवाल का। तो तुझे सुनना होगा किस्सा मेरे जीवनकाल का। बहुत साल पहले एक राजा ने यह मं

मुझे अच्छा नहीं लगता

P. C. Preet Tripathy & Siddharth  उसे तस्वीरों में कैद ना किया कर ऐ अजनबी, अभी शब्दों के जंजीरों से मैंने, उसे रिहा नहीं किया। पर उसपे हक़ जताने वाला मैं कौन होता हूँ? हाँ जानता हूँ, उससे मैंने ब्याह नहीं किया। पर जब - जब तू उसके पास जाता है, संग उसके जब मुस्कुराता है, सच कहता हूँ, मुझे अच्छा नहीं लगता। उसे अपनी कहानी की नायिका मत बना, मेरे कहानी का अंजाम लिखना अभी बाकी है। दिल मेरा मयखाना है अगर, तो वो अब भी मेरी साकी है। उसके आँखों के नशे में जब कोई और झूमता है, उसकी तस्वीर को मेरे अलावा, जब कोई और चूमता है, सच कहता हूँ, मुझे अच्छा नहीं लगता। उसे तू फूल ना दिया कर ऐ अजनबी, मेरे दिए फूल अभी, डायरी से उसने, फेंके नहीं हैं। क्या सोचकर तू हमारे बीच आ रहा है? शायद मेरे आँखों में प्रीत के भाव, तूने देखे नहीं हैं। यूँ सबके सामने मज़ाक में भी जब तू उसे अपनी बताता है, यूँ नुमाइश के लिए, जो गाता बजाता है, सच कहता हूँ, मुझे अच्छा नहीं लगता। अभी मेरे काँधे पर सर रख कर सोए उसे दो पल भी नहीं हुए। उस फूल को तंग ना किया कर मैं

दिल टूट गया...

उस दिन अँगूठी खरीदकर सोचा चलो आज इज़हार करता हूँ । आज उसे बता दूँ कि मैं कितना उससे प्यार करता हूँ । संकोच के सागर को पार कर जब मैं उसके पास आया । तकदीर को मेरा प्यार शायद रास ना आया । हिम्मत जुटाते - जुटाते शायद काफी देर हो गया । रेत का महल इसलिए माटी का ढ़ेर हो गया । उसके बाहों में बाहें डाल एक सुंदर शहज़ादा खड़ा था। जिसके नाम का कीमती हीरा उसकी अँगुली में जड़ा था। मैंने अपनी लाई अँगूठी छिपा ली जब देखा कि उसके होंठो पे हँसी थी । काश कोई मेरी आँखें देख लेता उस पल बस, बेबसी बसी थी । उससे जुदाई का आलम भी मैं सह नहीं पाया। उससे कितना प्यार है, कभी कह नहीं पाया। मैं कहता भी तो क्या? वो दोस्ती टूट जाती । उसके संग सफर करने की वो आख़िरी कश्ती भी छूट जाती। दिल रो रहा था पर उसकी खुशी पे मुस्कुराना भी था । “मैं सिर्फ उसका दोस्त हूँ” ये स्वांग कर के जताना भी था । मोहब्बत कुर्बानी का नाम है, ये आज जिंदगी ने बता दिया । ये सोच के आज भी रोता हूँ, कि किसने मोहब्बत को मेरे दिल का पता दिया । अजीब सा आलम था वो

मेरे सपनों का भारत...

मेरे सपनों का भारत Art By Ananya Behera Drawn By : Anwesha Mishra कल रात को मैंने एक सपना देखा। सपने में वतन अपना देखा। मैंने देखा कि भारत बन गया है विकासशील से विकसित। जहाँ बच्चे से लेकर बूढ़े सभी थे शिक्षित। लोग कर चुका कर अदा कर रहे थे अपना फर्ज़। और काले धन से मुक्त होकर भारत पे नहीं था करोड़ों का कर्ज़। मेरे सपने में तो भारत अमेरिका के भी विकास के करीब था। उस भारत में, हरेक के पास रोज़गार और कोई नहीं गरीब था। जहाँ हर ओर मज़बूत सड़क, ऊँची इमारत और खेतों में हरयाली थी पर्याप्त। जहाँ विज्ञान का विकास और सर्वश्रेष्ठ थी यातायात। जहाँ उच्चतम तकनीकी विकास और विकसित था संचार। जहाँ नेता भलाई करते थे और शून्य पर था भ्रष्टाचार। मेरा सपना यहीं तक पहुँचा था कि हो गयी भोर। मेरी नींद टूट गई सुनकर गली में एक शोर। गली में कोई ऐसा गर्जित हुआ। कि स्वप्न को छोड़, वास्तविक भारत की ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। इस शोर ने मुझे देर से सोने की दे दी थी सजा। मैंने खिड़की खोलकर देखा कि शोर की क्या थी वजह? मैंन

आज फिर ये सावन बरस रहा है...

आज फिर ये सावन बरस रहा है…  Drawn By : Amrita Pattnaik Art By : Ayush Sinha आज फिर ये सावन  बरस रहा है।  दिल तेरे दीदार को  तरस रहा है।  जब पहली दफा तुम्हें देखा था  वो अकेली अंधेरी रात थी।  मैं छतरी तले अकेला था,  तुम्हें भिगो रही बरसात थी।  जब बारिश के उस बूँद ने तुम्हारी  पलकों से उतरकर लबों को छुआ।  ना जाने उस सावन से  मेरे दिल को ईर्ष्या क्यूँ हुआ?  तुम्हारे गाल चूमती और  परेशान करती लटें।  माथे पर थी शिकन और  दुपट्टे में सिलवटें।  बारिश में तुझे भीगते हुए  मैं देख ना पाया।  पास जाकर तेरे हाथों में  वो छाता थमाया।  एक छाता तले  तू अमीर, मैं गरीब।  अकेले सड़क में हम दोनों  इतने ज्यादा करीब।  शायद तभी मुझे मेरी  मर्यादा ने जगाया।  तेरे हाथों में छाता देकर  मैं बारिश में लौट आया।  बरसते सावन से भी  तुम्हीं ने बचाया।  पास आकर उसी छाते से  मुझपर छाया पहुँचाया।  मुझ जैसे फकीर के  पास थी अप्सरा।  काँच का दिल लिए  पत्थरों से डरा।  तेरे दिल के करीब मेरा दिल  ज़ोरों से धड़ककर।  सावन म

छोटी सी इल्तिजा

छोटी सी इल्तिजा  Shot By : Preet Tripathy इक छोटी सी इल्तिजा है,  इतनी मशरूफ ना रहा करो।  ये खामोशी जान ले लेती है,  भला - बुरा कुछ तो कहा करो।  पता है कितना कुछ कहना होता है?  पर तुम मौजूद नहीं रहती।  वक़्त पहले से माँग रखता हूँ, इसके बावजूद नहीं रहती।  दिन भर थक कर जब रात को  गुफ्तगू करने का मन होता है।  तुम्हें तब इतना मशगूल देख  दिल को बहोत जलन होता है।  पता है मैंने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है?  पर तुम्हारे पास सुनने का वक़्त ही कहाँ?  आज भी वहीं इंतज़ार करता हूँ,  तुम और मैं, मिलते थे जहाँ।  हाँ पता है काम करती रहती हो।  पर दो घड़ी खैरियत तो पूछ लिया करो।  पता है तेरी बहोत याद आती है?  लफ़्ज़ों में एहसासों को महसूस किया करो।  किस से पूछूँ? कुछ सवाल हैं मेरे  किस से कहूँ वो सब बातें?  तेरे संग जिसका पता नहीं चलता था  अब अकेले कटती नहीं वो रातें।  कितने दिन हो गए, तुम्हारी आवाज़ सुने  अब तो कोई मुझे डांटता भी नहीं।  सफेद कागज़ और काली स्याही  और किसी से मैं, ये ग़म बाँटता भी नहीं।  हाँ सैकड़ों लोगों को जान

एक आखिरी सीख

एक आखिरी सीख  Art By : Shashank Shekhar Barik  Shot By : Preet Tripathy  एक कहानी सुनाता हूँ  जिसमें अलग ही है भाव।  जहाँ यौवन के जोश और  अनुभव में हुआ टकराव।  एक बार की बात है,  एक पिता को अपने बेटे को  सौपना था व्यापार।  कुछ शिक्षा देने के बाद ही  देना था कार्यभार। पिता ने सीखा दी बेटे को  सारी कूटनीति।  बस बेटे के पास नहीं थी, अनुभव की अनुभूति।  पहली और आखिरी बार  बाप - बेटे साथ करने निकले व्यापार।  बिल्कुल अलग थे  दोनों के उम्र, दोनों के विचार।  सारा सामान लेकर निकल पड़े  सुबह के पहले पहर में।  धन कमाने निकल पड़े, गाँव से शहर में।  दोनों चल रहे थे खेतों से  सुबह - सुबह की ओस में।  बेटा, पिता के आगे चल रहा था  यौवन के जोश में।  रास्ते में कई जगह,  बहुत से निर्जन प्रांत थे।  पर पिता पीछे - पीछे गहरी सोच में,  सागर की तरह शांत थे।  शहर अभी दूर था, अभी उन्होंने  आधा ही तय किया था रास्ता।  कि पहली बार आए बेटे की  हालत हो गई खस्ता।  चलते - चलते उन्हें रास्ते में  मिला एक तबेला।  जहाँ एक