छोटी सी इल्तिजा
Shot By : Preet Tripathy |
इक छोटी सी इल्तिजा है,
इतनी मशरूफ ना रहा करो।
ये खामोशी जान ले लेती है,
भला - बुरा कुछ तो कहा करो।
पता है कितना कुछ कहना होता है?
पर तुम मौजूद नहीं रहती।
वक़्त पहले से माँग रखता हूँ,
इसके बावजूद नहीं रहती।
दिन भर थक कर जब रात को
गुफ्तगू करने का मन होता है।
तुम्हें तब इतना मशगूल देख
दिल को बहोत जलन होता है।
पता है मैंने तुम्हारे लिए कुछ लिखा है?
पर तुम्हारे पास सुनने का वक़्त ही कहाँ?
आज भी वहीं इंतज़ार करता हूँ,
तुम और मैं, मिलते थे जहाँ।
हाँ पता है काम करती रहती हो।
पर दो घड़ी खैरियत तो पूछ लिया करो।
पता है तेरी बहोत याद आती है?
लफ़्ज़ों में एहसासों को महसूस किया करो।
किस से पूछूँ? कुछ सवाल हैं मेरे
किस से कहूँ वो सब बातें?
तेरे संग जिसका पता नहीं चलता था
अब अकेले कटती नहीं वो रातें।
कितने दिन हो गए, तुम्हारी आवाज़ सुने
अब तो कोई मुझे डांटता भी नहीं।
सफेद कागज़ और काली स्याही
और किसी से मैं, ये ग़म बाँटता भी नहीं।
हाँ सैकड़ों लोगों को जानता हूँ
पर तेरे पैगाम का इंतज़ार रहता है।
ये कैसा इश्क़ है जिसमें, दिल में हाँ
और जुबाँ पे इंकार रहता है।
तुम मिलने की वजह पूछती हो
कैसे समझाऊँ हर ‘क्यूँ’ का जवाब नहीं होता।
हाँ बार - बार देखना चाहता हूँ, क्यूँकि
तुम जितना खूबसूरत, हर ख्वाब नहीं होता।
पता है कितने दिनों से
तुमने पूछा नहीं है कि “खाना खाया?”
और जो आखिरी सवाल मैंने पूछा था
उसका भी अब तक जवाब नहीं आया।
सोचता हूँ उसे याद दिलाया जाए
पर वो कहीं परेशान ना हो जाए,
ये सोच कर डर जाता हूँ
हर बार मैं ही क्यूँ पहल करूँ?
शायद इस अना के लिए ठहर जाता हूँ।
सितारों की बस्ती में घूमते घूमते
इस कदर ना मशगूल हो जाना।
जमीं पर रहने वाले इस दीपक को
तुम कहीं भूल ना जाना।
ये काम है या इंतकाम है
या इम्तेहान है मेरे प्यार का?
इंतज़ार था, इंतज़ार है
इंतज़ार रहेगा तेरे प्यार का…
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
05th March 2018
08 : 26 : 17 PM
शब्दार्थ
इल्तिजा - Request
मशरूफ - Busy
गुफ्तगू - Chat
मशगूल - Busy
खैरियत - asking welfare
पैगाम - message
अना - ego
इंतकाम - revenge
इम्तेहान - test
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