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Govardhandhari

गोवर्धनधारी



सुख समृद्धी से भरा ऐसा एक नगर था, 
जिसमें गोवर्धन नामक एक डाकू का डर था, 
एक दिन सेनापति सेना लेके उसके पीछे पड़ जाता है, 
घोड़े पर पीछा करते, नगर में भगदड़ मच जाता है। 

पास में पंडित परशुराम की सत्संग हो रही थी, 
जान बचाते डाकू की साहस भंग हो रही थी, 
घोड़ा छोड़ डाकू सत्संग में घुस जाता है 
सर पर कपड़ा डाल श्रद्धालुओं के बीच में छुप जाता है। 

पंडित जी कृष्ण की लीला गाते हैं, 
कान्हा की बाल कहानी सबको सुनाते हैं, 
आठ बरस का किशन गाय चराने जाता है, 
पीताम्बर में सुसज्जित बालक मुरली बजाता है, 

सोने की करधनी, बाजूबंध और सोने का मुकुट 
मोर पंख लगाए हुए और लेके हाथ में लकुट 
मनमोहन अपने सखा के साथ गायों को चराता है 
ऐश्वर्य सा तेज लिए वो मंद मंद मुस्काता है। 

सोना सोना सुनकर डाकू के कान खड़े हो जाते हैं 
ऐसा धनी बालक सोच, दोनों आँख बड़े हो जाते हैं 
सत्संग के बाद चुपके से डाकू पंडित के पास जाता है, 
अपनी धारदार चाकू वो पंडित के गले पर ठहराता है। 

मुरख डाकू कहता है कि जान तुम्हें है अपनी प्यारी 
तो उस बालक की दे दो मुझको तुम पूरी जानकारी, 
वो सोना पहनने वाला बालक किस नगर से आता है, 
है उसके पिता कौन और किस नाम से कहलाता है? 

पंडित हँस कर कहते हैं कि तुम्हारा परिचय क्या है? 
उस छोटे बालक से तुम्हारा अभिप्राय क्या है? 
"मैं वही गोवर्धन डाकू जिससे पूरा नगर डर जाता है 
उस बालक का धन लूट लेना ही मेरा पक्का इरादा है" 

अच्छा वो बालक तो रहता है मथुरा वृंदावन में 
लेकिन सच मानो तो, वो बसा है सृष्टि के कण कण में 
नंद बाबा के कांधे पर खेलता, यशोदा के गोद में सो जाता है 
है कई नाम उसके लेकिन बांकेबिहारी कहलाता है 

लेकिन तुझ जैसा चोर उसे छू भी नहीं पाएगा 
है नटनागर कन्हैया तेरे चंगुल में नहीं आएगा 
है लूटा है मैंने कई राजाओं को और आज ये कसम खाता हूँ 
उस बालक को लूटे बिना पानी नहीं पीऊँगा, ये वादा कर के जाता हूँ 

डाकू ढूँढने निकला उसे जो छैल छबीला है 
पंडित समझ गए कि अब होने वाली कोई लीला है 
वो कहते हैं कि 
"कभी-कभी बिना डराए प्यार से भी काम हो जाता है, 
ये माखन मिश्री ले जा उस गोविंद को बहोत भाता है"। 

माखन मिश्री लेके डाकू वृंदावन की ओर चलने लगा 
नाम भूल ना जाए इसिलिये कृष्णा कृष्णा जपने लगा 
श्याम सुंदर की गाएं कहाँ है? डाकू पूछने लग जाता है 
हर गाए उन्हीं की हैं, हर कोई उसे यही बतलाता है। 

यशोदा का नंदलाल स्वर्ण मुकुट धारी कहाँ मिलेगा? 
वो तो कथा का केशव है, तू जहाँ देखेगा वहाँ मिलेगा। 
थककर प्यासा डाकू बैठे बैठे मन में दोहराता है 
है सच में कहीं पे मुरारी तो सामने क्यूँ नहीं आता है? 

फिर डाकू को सुनाई पड़ती है जोरों की हुंकार 
अरे गोपाल तेरी गाए भागी जा रही उस पार
वही वेशभूषा, वही सोने से सुशोभित एक बालक मुस्कराता है 
इतने में दौड़ के डाकू उसके सामने पहुँच जाता है 

कहता है बालक मेरा नाम गोवर्धन डाकू है, 
अपना सोना मुझे दे दे, देख मेरे हाथ में चाकू है, 
बालक हँसकर कहता है कि इस चाकू से मुझे डराता है 
गोवर्धन होके गोवर्धन धारी से टकराता है। 

डाकू फुसला के कहता है तेरा सोना मुझको ला दे 
बदले में चाहे ये मीठी माखन मिश्री खा ले 
बड़े चाव से बालक डाकू का माखन मिश्री खाता है 
और थोड़ा प्रसाद डाकू के मुँह में रख जाता है 

माखन खाते ही डाकू के नेत्र खुल जाते हैं 
छोटा बालक विश्वरूप महा विष्णु में बदल जाते हैं 
देखते ही देखते डाकू का अज्ञान मीट जाता है 
रोते रोते डाकू जगदीश के पैरों पर गिर जाता है। 

बहोत सुनने वाले, बोलने वाले बुद्धिमान यूँही रह गए 
चलने वाले, मानने, ठाननेवाले को भगवत मिल गए। 
श्रीमद् भागवत गीता हम सबको यही सीख सिखलाता है 
कर्म करने वाला ही अंत में विजय ध्वज लहराता है... 

-दीपक कुमार साहू 
01-Jan-2024
10 : 09 : 24 PM

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