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तुम, मैं और दो कप चाय।

Art By : Amrita Patnaik  दिसम्बर की ठंड और मुझसे दूर तुम। मानो खुद के ही शहर में हो गया मैं गुम। आज भी हर सुबह, वो शाम याद आए, तुम, मैं और दो कप चाय । कड़कती ठंड में भी तुम जैसे, सुबह की हल्की धूप। ढलती शाम में भी निखरते चाँद का प्रतिरूप। वो सारे शाम, जो हमने साथ बिताए, तुम, मैं और दो कप चाय । साथ चलते - चलते उस शाम, तुमने चाय की फरमाइश की। और मेरे ना कहने की तो कोई गुंजाइश न थी। बहुत खूबसूरत लगती हो जब, होठों की मुस्कान, आँखों में आ जाए, तुम, मैं और दो कप चाय । बनते चाय में आता उबाल, जैसे तुम्हारे नाक पर गुस्सा। छोटी - मोटी नोकझोंक, वो भी हमारे प्यार का हिस्सा। तेरा मुझे डाँटना, आज भी मुझे रिझाए, तुम, मैं और दो कप चाय । दोनों हाथों से चाय का गिलास पकड़कर, तुम्हारा वो प्यार से फूँक लगाना। उन प्यारी - प्यारी अदाओं से दिल में मीठा हूँक उठाना। फिर गिलास को चूमती वो गुलाबी होंठ, हाय!!!! तुम, मैं और दो कप चाय । हर चुस्की पर सुकून से तेरा, वो आँखें बंद कर लेना। और खुली आँखों से तुम्हें तकते - तकते मेरा जी...

मेरे सपनों का भारत...

मेरे सपनों का भारत Art By Ananya Behera Drawn By : Anwesha Mishra कल रात को मैंने एक सपना देखा। सपने में वतन अपना देखा। मैंने देखा कि भारत बन गया है विकासशील से विकसित। जहाँ बच्चे से लेकर बूढ़े सभी थे शिक्षित। लोग कर चुका कर अदा कर रहे थे अपना फर्ज़। और काले धन से मुक्त होकर भारत पे नहीं था करोड़ों का कर्ज़। मेरे सपने में तो भारत अमेरिका के भी विकास के करीब था। उस भारत में, हरेक के पास रोज़गार और कोई नहीं गरीब था। जहाँ हर ओर मज़बूत सड़क, ऊँची इमारत और खेतों में हरयाली थी पर्याप्त। जहाँ विज्ञान का विकास और सर्वश्रेष्ठ थी यातायात। जहाँ उच्चतम तकनीकी विकास और विकसित था संचार। जहाँ नेता भलाई करते थे और शून्य पर था भ्रष्टाचार। मेरा सपना यहीं तक पहुँचा था कि हो गयी भोर। मेरी नींद टूट गई सुनकर गली में एक शोर। गली में कोई ऐसा गर्जित हुआ। कि स्वप्न को छोड़, वास्तविक भारत की ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। इस शोर ने मुझे देर से सोने की दे दी थी सजा। मैंने खिड़की खोलकर देखा कि शोर की क्या थी वजह? मैंन...

Govardhandhari

गोवर्धनधारी सुख समृद्धी से भरा ऐसा एक नगर था,  जिसमें गोवर्धन नामक एक डाकू का डर था,  एक दिन सेनापति सेना लेके उसके पीछे पड़ जाता है,  घोड़े पर पीछा करते, नगर में भगदड़ मच जाता है।  पास में पंडित परशुराम की सत्संग हो रही थी,  जान बचाते डाकू की साहस भंग हो रही थी,  घोड़ा छोड़ डाकू सत्संग में घुस जाता है  सर पर कपड़ा डाल श्रद्धालुओं के बीच में छुप जाता है।  पंडित जी कृष्ण की लीला गाते हैं,  कान्हा की बाल कहानी सबको सुनाते हैं,  आठ बरस का किशन गाय चराने जाता है,  पीताम्बर में सुसज्जित बालक मुरली बजाता है,  सोने की करधनी, बाजूबंध और सोने का मुकुट  मोर पंख लगाए हुए और लेके हाथ में लकुट  मनमोहन अपने सखा के साथ गायों को चराता है  ऐश्वर्य सा तेज लिए वो मंद मंद मुस्काता है।  सोना सोना सुनकर डाकू के कान खड़े हो जाते हैं  ऐसा धनी बालक सोच, दोनों आँख बड़े हो जाते हैं  सत्संग के बाद चुपके से डाकू पंडित के पास जाता है,  अपनी धारदार चाकू वो पंडित के गले पर ठहराता है।  मुरख डाकू कहता है कि जान तुम्हें है...