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Showing posts from 2021

Shayari No. 51

 वो मुझसे प्यार करती है  वो मुझसे प्यार नहीं करती  ये दो सवाल पूछ पूछ के  मैंने सारे पंखुड़ि तोड़ डाले  शक़ करते करते मेरे हिस्से काँटे ही बचे

Shayari No. 50

  ऐसी कोई खूबी नहीं है मुझमें लेकिन तुम तारीफ़ कर देती हो तो खुद पे गुरूर आ जाता है...

Shayari No. 49

  यारों इस बार उन्हें याद मत दिलाना, मैं देखना चाहता हूँ कि क्या उन्हें मेरा जन्मदिन याद है? 

Shayari No. 48

  मुझसे मिलते वक़्त घड़ी घड़ी यूँ घड़ी ना देखा करो, मैं तुम्हें देखकर वक़्त भूल जाती हूँ, तुम वक़्त देख कर मुझे भूल जाते हो... 

Shayari No. 47

 मुद्दत से जो जोड़ा था धीरे धीरे कर के, उस प्यार का तूने बटवारा कर दिया... इक बस तेरे प्यार का सहारा था मुझे, यूँ दूरी क्या बढ़ी, तूने बेसहारा कर दिया...

Shayari No. 46

 आते जाते हर कोई मुझपर हँसता जा रहा है, खैरात की जिंदगी मौत से बदतर होती है

Shayari No. 45

  मैं सोना नहीं चाहता, आने वाले कल से डर लग रहा है... 

Shayari No. 44

 आज फिर किसी ने कह दिया कि मोहब्बत नहीं दोस्ती चाहिए तुमसे, तुम यार के लायक हो प्यार के नहीं...

Shayari No. 43

 अब इस रिश्ते को क्या नाम दूँ? वो मुझसे बात करते वक़्त रोती है, मैं उससे बात करने के बाद रोता हूँ...

Shayari No. 42

 तूने रिश्ते को हमारे नाम नहीं दिया, कोई ग़म नहीं... पर किसी और का तेरा खास हो जाना मुझे मंजूर नहीं...

Shayari No. 41

 टूटकर जब मैं घर लौटकर आया, तेरा फिर घर छोड़कर जाना मुझे और तोड़ गया...

Shayari No. 40

 तू उस तस्वीर में किसी और की बाहों में थी, बस इतना सा जहर काफ़ी था मेरे मर जाने के लिए

Shayari No. 39

 कुछ अफसोस,  कुछ लाचारी,  कुछ हँसती आँखें घूर रही हैं... इनसे पहले खुदका सामना करना चाहता हूँ, मैं ये शहर छोड़ना चाहता हूँ...

Shayari No. 38

 वो पूरा मोहल्ला जो तुझे मेरी मानता था, वहाँ रहना मेरा दुश्वार हो गया जो तूने किसी का हाथ थाम लिया,

आज दोस्त मिलने आए हैं

  कुछ हालचाल की बात... कुछ हाल फिलहाल की बात...  कुछ मलाल की बात...  जीवन के जंजाल की बात...  ऐसे ही हम महफिल की शुरुआत करेंगे,,  आज दोस्त मिलने आए हैं, घंटों बात करेंगे...  कुछ इधर की बात...  कुछ उधर की बात... जिधर जा के शर्म भी शर्मा जाए,,  जी हाँ उस कदर की बात...  अच्छी बुरी सारी हद को पार करेंगे,,  आज दोस्त मिलने आए हैं, घंटों बात करेंगे... कुछ यार की बात...  कुछ दिलदार की बात...  कुछ इज़हार की बात...  कुछ इकरार की बात...  टूटे दिल के डॉक्टर बनके ऐसा उपचार करेंगे,,  आज दोस्त मिलने आए हैं, घंटों बात करेंगे... कुछ हमारी बात... कुछ तुम्हारी बात...  दिल को सुकून दे जाए,, ऐसी कोई प्यारी बात... दोस्त की ताकत याद दिलाकर उत्साहित दिन रात करेंगे,,  आज दोस्त मिलने आए हैं, घंटों बात करेंगे... कुछ हँसी की बात....  कुछ खुशी की बात... कुछ उन्हीं की बात...  कुछ जिंदगी की बात...  जैसी भी हो ज़रूरत, मदद हम हाथोंहाथ करेंगें  आज दोस्त मिलने आए हैं, घंटों बात करेंगे... कुछ मिलने की बात....  कुछ बिछड़ने की बात  कुछ करने की बात....  थोड़ा लड़ने की बात,,  जो भी मनमुटाव, हम सब राख करेंगे  आज दोस्त मिलने आ

The Katkia Girl

  I tried and tried but could not sleep Since her smile had taken it away. She was disturbing me even in my thoughts Throughout night and day. I looked for solace but couldn’t get any Cos’ feelings like this for me were uncanny. I diverted my mind but in vain, My mind had accepted that it had gone insane. That one look of hers with constant gaze Made my heart fall into a maze. The centre of which I couldn’t decipher I felt helpless during the entire endeavour. For my restlessness there was no reason, My mind was accusing my heart of treason. I saw myself trapped in a cage, Or was this a delusion putting me in a haze. Initially for her I was just an acquaintance, But soon we became friends nearing the distance. From friends to lovers the journey wasn’t long, Everything was smooth and fine like a sweet song. She wanted both to become one, I can’t feign ignorance. But I can’t disavow the bitter truth that, It was our relationship that cause

Shayari No. 37

  मोहब्बत का खुमार उतर जाने के लिए...  दो झूठ ही काफी थे मुकर जाने के लिए...  तेरे इश्क़ में बीमार तो पहले से ही थे हम, इक बेवफाई की कसर थी गुजर जाने के लिए...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 36

  तस्वीरें गवाह है कि वो  हसीन हादसा मेरे साथ भी हुआ था,  मैं इतना खुशनसीब था  मुझे खुद पे यकीन नहीं... 

Shayari No. 35

  हर रात तेरी तस्वीर देख, तेरे हो जाते हैं , फोन सीने पे रखकर यूँ ही सो जाते हैं, तुम भूलकर भी भूल से भूल ना जाना मुझे,, लोग कहते हैं जो दूर जाते हैं... खो जाते हैं -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 34

तेरी झलक भर से दिल खुशियों पे सवार होता है,  काजल भरी आँखों का ऐसा खुमार होता है,  जून के अंत पे आ जाए जो तेरा जन्मदिन,,  वो जन्मदिन नहीं, मेरे लिए त्योहार होता है... -दीपक कुमार साहू   

Shayari No. 33

  अभी तो सुबह देखा था, अभी शाम देख रहा हूँ, बिन तेरे ये दिन बीतते नहीं खोते जा रहे हैं...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 32

उसे मेरी जेब की गहराई का अंदाजा है,,  इस जन्मदिन उसने मुझसे सिर्फ प्यार माँगा है...  -दीपक कुमार साहू   

Shayari No. 31

  तुम्हारे सामने हर दफा दिल हारता है कोई...  अब आईने में देख खुद को सवारता है कोई...  सच बताना क्या तुम्हें हिचकी नहीं आती? शामों सुबह तुम्हारी तस्वीर निहारता है कोई...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 30

  यूँ दूरियों के सन्नाटों से बेहतर हैं  कुर्बत के झगड़े... वो पल पल मुझसे लड़ती है,, मैं हर पल उसपे मरता हूँ...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 29

  दोस्ती यारी छूट गई, यादें अब भी साथ हैं... कसमें वादे टूट गए, बातें अब भी साथ हैं... बिछड़ते वक़्त जो भेंट तुमने दिए थे,,  वो फूल तो यूँही सूख गए,, किताबें अब भी साथ हैं..  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 28

  तेरा हँस कर मिलना मुझसे, हर बार ये उम्मीद दिलाता है कि "सब ठीक हो जाएगा" और ये उम्मीद मुझे हर बार रिश्ता तोड़ने से रोक लेता है...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 27

  वो समझोता था या था टूटने का डर? मालूम नहीं...  मैंने सवाल पूछने छोड़ दिए, अब झगड़े नहीं होते... 

Shayari No. 26

  अब हद से ना आगे बढ़ो दोस्तों,  मेरी वकालत कर ना लड़ो दोस्तों,,  उनकी याद आती है और मैं रो पड़ता हूँ,  यूँ मोहब्बत की बातें ना करो दोस्तों...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 25

  समझूँ तारीफ़ या मान लूँ तौहीन? उसका ये कहना कि  "वो बिल्कुल तुम जैसा है..." -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 24

  तेरे मैसेज की धीमी धुन से भी उठ जाता है,, वो लड़का जिसे अलार्म के शोर में भी सोने की आदत थी...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 23

  पहले तो मचलते ही रह गया रात भर...  फिर रोने से संभलते ही रह गया रात भर...  उसने वादा जो किया कि वो फोन करेगी,,  मैं करवट ही बदलते रह गया रात भर...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 22

कभी तुम भी हमें मना लेती  तो अच्छा लगता,, ओह... हाँ, हमने तो कभी बताया भी नहीं कि कब रूठे थे हम... -दीपक कुमार साहू 

Eid Mubarak

सब कहते थे ईद मुबारक, मैंने कुछ भी कहा नहीं था,, सब देखते थे आसमान में, मेरा चंदा जगा नहीं था,, अब जो उनका दीदार हो गया, फिर से मुझको प्यार हो गया, अब कहते हैं दिल से दिल तक,, ईद मुबारक... ईद मुबारक...  -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 21

  मेरा जिस्म, मेरी जान और ये मेरा दिल बगावत कर देते हैं,, मैं तुमसे जो झगड़ूँ, मेरी तबियत बिगड़ जाती है... -दीपक कुमार साहू 

Shayari No. 20

  कुछ है जो फंस के रह गया है अंदर मेरे,, बहोत दिन हो गए मैं रोया नहीं हूँ...  -दीपक कुमार साहू 

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है - अध्याय 6

अध्याय 6   आप सभी को बता दूँ कि सिद्धार्थ मेरे बचपन का घनिष्ठ मित्र है। हम दोनों ही बारहवीं विज्ञान की परीक्षा दे कर परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसीलिए जब पिता जी कहा कि सिद्धार्थ का फोन आया था तो मैंने कौतुहल में पूछा कब? तब उन्होंने कहा कि "जब तू सोया हुआ था तब" मैंने अपने मित्र को फोन करने की सोची। मैंने उसी कुर्सी पर बैठकर सिद्धार्थ को फोन किया। भविष्य में कहाँ पर दाखिला लेना है और किस विषय का चयन करना है, इसी विषय में बात करते करते करीब पंद्रह मिनट बीत गए। मैंने फोन रखा। पीछे मुड़ा तो देखा जीजाजी खड़े थे।  वो चुप चाप पीछे दाढ़ी बना रहे थे। उन्हें देखकर मुझे एक बात याद आई। तब मैंने उनसे पूछा कि आप सेना में किस तरह गए? क्या एन. डी. ए. की परीक्षा देकर? उन्होंने कहा हाँ।मैंने कहा कि मैंने भी एन. डी. ए. की परीक्षा दी है। उन्होंने कहा अच्छी बात है। जब तक तुम्हारा प्रशिक्षण ख़त्म होगा और तुम नौकरी कर रहे होगे तब तक हम रिटायर्ड होंगे। उनकी आवाज ऐसी लग रही थी मानो कि कोई अपने उत्तराधिकारी से बात कर रहा हो। उन्होंने मुझसे पूछा कि आगे क्या करना है? मैंने कहा कि अगर इंजीनियरिंग

तुमने जो दी थी बद्दुआ

तुमने जो दी थी बद्दुआ…  हाँ जिससे मैं प्यार करती थी,  उसने मुझको छोड़ दिया।  तुम तो दूर जा ही चुके थे,  उसने भी मुह मोड़ लिया।  तुम जैसे तड़पे थे, मैं भी वैसे तड़प गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  वो कहता है "तुमसे मैं प्यार नहीं करता"  ठीक वैसे ही जैसे, मैंने तुमसे कहा था।  हाँ पता चला मुझे दिल टूटने का दर्द,  वही दर्द जो तुमने सहा था।  मेरे भी दिल में नफ़रत की आग सुलग गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  मन में मेरे भी गुस्सा जागा,  हफ्तों तक ना सोई मैं।  रातों को हाँ तीन बजे तक,  तुम जैसा ही रोई मैं।  किसी के जाने से, जिंदगी इतनी उलझ गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  ना तुम थे… ना वो था…  ना ही कोई और।  मेरे अकेलेपन में था केवल  टिक टिक करते घड़ी का शोर।  प्यार के दरिया में दोस्ती भी झुलस गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  अब वो जिस लड़की के साथ है, क्या वो मुझसे अच्छी है??  ये सवाल मुझे अंदर ही अंदर खा रहा है।  तुम्हें भी हमें देखकर कितनी तकलीफ हुई होगी,  मुझे आज समझ में आ रहा है।  देखते ही देखते ये जिंदगी मेरी…. पलट गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।