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कहानी अभी खत्म नहीं हुई है - अध्याय 6


अध्याय 6
 आप सभी को बता दूँ कि सिद्धार्थ मेरे बचपन का घनिष्ठ मित्र है। हम दोनों ही बारहवीं विज्ञान की परीक्षा दे कर परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। इसीलिए जब पिता जी कहा कि सिद्धार्थ का फोन आया था तो मैंने कौतुहल में पूछा कब? तब उन्होंने कहा कि "जब तू सोया हुआ था तब" मैंने अपने मित्र को फोन करने की सोची। मैंने उसी कुर्सी पर बैठकर सिद्धार्थ को फोन किया। भविष्य में कहाँ पर दाखिला लेना है और किस विषय का चयन करना है, इसी विषय में बात करते करते करीब पंद्रह मिनट बीत गए। मैंने फोन रखा। पीछे मुड़ा तो देखा जीजाजी खड़े थे। 

वो चुप चाप पीछे दाढ़ी बना रहे थे। उन्हें देखकर मुझे एक बात याद आई। तब मैंने उनसे पूछा कि आप सेना में किस तरह गए? क्या एन. डी. ए. की परीक्षा देकर? उन्होंने कहा हाँ।मैंने कहा कि मैंने भी एन. डी. ए. की परीक्षा दी है। उन्होंने कहा अच्छी बात है। जब तक तुम्हारा प्रशिक्षण ख़त्म होगा और तुम नौकरी कर रहे होगे तब तक हम रिटायर्ड होंगे। उनकी आवाज ऐसी लग रही थी मानो कि कोई अपने उत्तराधिकारी से बात कर रहा हो। उन्होंने मुझसे पूछा कि आगे क्या करना है? मैंने कहा कि अगर इंजीनियरिंग नहीं मिली तो सेना में आ जाऊँगा। उन्होंने बुलंद आवाज में कहा - " सेना में आ जाओ। वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना "। 

उनकी आवाज में इतना दम था कि कुछ देर तक तो मेरे मन में भी देशभक्ति गूंजने लगी। फिर दोपहर का खाना पीना करके मैं ऊपर आराम करने लगा कि तभी मैंने देखा कि मेरे पिता, फुफाजी शादी के तैय्यारी में लग गए। तब आलोक आया और बोला चलिए आप बाहर चलिए। क्या अकेले अकेले बैठे हुए हैं। बाहर चलिए। बाहर मौसम बहुत सुहावना है। मैं बोला - मन नहीं कर रहा है। फिर वो बोला ऊपर हवा चल रही है। चलिए पतंग उड़ाते हैं। मैं बोला - पतंग कहाँ है? उसने कहा - दो रुपए दीजिए, मैं अभी ला देता हूँ। मैं बोला दो रुपए नहीं है मेरे पास। फिर उसने मेरे भाई से माँगा। मेरे भाई ने उसे दे दिया। फिर वो मेरा हाथ खिंचने लगा और बोला चलिए आप भी मेरे साथ। मैंने बोला मैं नहीं जाऊँगा। वह फिर जबरदस्ती करने लगा। बोला बहुत पास में है। मैंने बोला, पतंग तो खुद अपने हाथों से बना सकते हैं। यह सुनकर आलोक स्थिर हो गया। 

वह बोला आप हाथ से पतंग बना लेते हैं! मैंने बोला हाँ। क्या क्या चहिये होता है उसके लिए? वह बोला। फिर मैंने बोला - पेपर, सेलो टेप, कैंची, और पतले पतले सरकंडे। वह झटपट नीचे गया और सारी सामाग्री ले आया किंतु कैंची नहीं ला पाया। वह बोला यह लीजिए बनाइये। मैं स्तब्ध रह गया। मैं पतंग बनाने के लिए आगे बढ़ा। तभी वो बोला दीजिए मैं बनाता हूँ। फिर वह मेरे हाथों से अखबार लेकर बनाना शुरू करने लगा। उसने मुझसे बहुत कम निर्देश लिए। सेलो टेप को वो अपने हाथ से ही तोड़ने लगा। फिर बारी आई छेद करने के लिए ताकि धागा पिरोया जा सके। मैंने उसे उपयुक्त स्तान बताया। पर उसे वहाँ छेद करना पसंद नहीं आया। फिर उसने अपने मन मुताबिक बीचोंबीच छेद कर दिया। मैंने उसे मना किया और उससे पतंग लेकर सही जगह छेद कर दिया और धागा भी डाल दिया। उसे फिर भी पसंद नहीं आया। उसने मेरे हाथ से पतंग ले लिया और मेरे द्वारा डाला हुआ धागा निकल दिया और अपने छेद में धागा डाल दिया। खैर जो भी हो पतंग तैय्यार हो गई। 


तभी कृष्णा जी वहाँ आ गए। दोनों को साथ बैठा देख वह बोले - क्या कर रहे हो? तब आलोक बोला पतंग बना रहे हैं। कृष्णा जी बोले तुम्हारी ये पतंग नहीं उड़ेगी। आलोक बोला कैसे नहीं उड़ेगी। जरुर उड़ेगी। आलोक ने हवा में पतंग उछाला। पतंग कागज के पन्नों की तरह मुड़कर गिर गई। कृष्णा जी हसने लगे। आलोक ने उसे सीधा करने की कोशिश की। किंतु वो ठीक नहीं हुआ। आलोक थोड़ा दुखी हुआ। फिर उसने अपने हाथों से अपनी बनाई हुई पतंग मोड़कर खिड़की के बाहर फेंक दी। मुझे लगा चलो अब तो अखिरकार आलोक शांत हो जाएगा। फिर उसने कहा - चलिए क्रिकेट खेलते हैं। । कहानी अभी खत्म नहीं हुई है….

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