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Showing posts from May, 2018

मुलाकात

मुलाकात   वो शाम जो अब तक उधार थी कल उसका हिसाब होगा। कल कहीं अकेले में मेरे सवालों पर उसका जवाब होगा। प्यार के मूल पर आँसू रुपी ब्याज की बरसात होने वाली है। कल मेरी और उसकी मुलाकात होने वाली है। कल इतने दिनों बाद उसका दीदार होगा। एक झूठ मूठ के झगड़े से शुरु हमारा प्यार होगा। उससे मिल कर फिर नए सिरे से जीवन की शुरुआत होने वाली है। कल मेरी और उसकी मुलाकात होने वाली है । “इतने दिन मेरी याद नहीं आई?” ये तो जरूर पूछूँगा। उसको सताने को जान बूझकर झूठ मूठ का रूठूँगा। कुछ इधर की बातें, कुछ उधर की, ना जाने क्या क्या बात होने वाली है? कल मेरी और उसकी मुलाकात होने वाली है गुस्सा, प्यार, करुणा, जलन मेरे चेहरे पर ये सब रँग होंगे। इस दुनिया से दूर कहीं, वो, मैं और दो कॉफी संग होंगे। कल अमावस है, पर उसके होने पर पूनम की रात होने वाली है। कल मेरी और उसकी मुलाकात होने वाली है । उसे मेरी कोई बात बुरी ना लगे, इसका भी खयाल होगा। अब तक प्यार छिपा रखा था, इसका ज़रा मलाल होगा। कल ग़मों की छुट्टि और खुशियों की सौगात

इस लायक नहीं हो तुम

इस लायक नहीं हो तुम  A Tribute To Zakir Khan Pic Credit : Preet & Subham मेरे कुछ सवाल हैं, जो सिर्फ क़यामत के रोज़ पूछूँगा तुमसे क्यूँकि उससे पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके, इस लायक नहीं हो तुम… मैं जानना चाहता हूँ कि तुमसे बातें करते करते वो भी तुम्हारी आँखों में खोता है क्या? क्या तेरे दिल की दास्तान सुनकर वो भी जाने अनजाने रोता है क्या? जिस तरह मैं रोया करता था… रात रात भर जागकर वो भी तुम्हें कहानियाँ सुनाया करता है क्या? बातें करते करते जब तू सो जाती है तब भी बिना रुके वो अपनी बातें बताया करता है क्या?  जिस तरह मैं बताया करता था...  क्या वो भी मेरी तरह रोज़ कहता है कि “जाओ खाना खा लो”? क्या वो भी दिल की बातें पूछता है? ये कह कर कि “मन हल्का हो जाएगा, बता दो” जिस तरह मैं पूछा करता था…   तेरी हर परेशानी को वो भी हल कर देता है क्या? क्या बेवकूफी भरी बातें कर के तेरी उदासी को हसीं में बदल देता है क्या? जिस तरह मैं बदल दिया करता था…   क्या वो भी नाराज़ होने पर चुप रहता है या फिर शिकायत करता है? तुम्हें छूए

मैं तुझसे प्यार नहीं करता

मैं तुझसे प्यार नहीं करता A Tribute To Manoj Muntashir  Art By : Shashank Shekhar Barik  वो रास्ता जो हमें अलग कर दे  उस पर चलता जा रहा हूँ।  खामोशी के सागर में,  इक सूरज सा ढलता जा रहा हूँ।  अब तेरी सोहबत पर  मैं अधिकार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  वो तेरा जिक्र होते ही  मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी।  हाँ, मेरा नाम सुनकर  तू भी तो शर्माती थी।  उन अनकही बातों का  अब इकरार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  “सब कुछ कह दूँगा उसे”  ये सोचकर जाता था।  बस इधर उधर की बातें करके  खाली हाथ लौट आता था।  आईने के सामने खड़े होकर  अब इज़हार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  वो तेरा नाम लेने का लहजा  पहले जैसा रहा नहीं।  दिल इतनी जोर से टूटता है  मुझसे किसी ने कहा नहीं।  अब दोस्त छेड़ें भी तो  हँसकर इंकार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  मैं तुझसे प्यार नहीं करता…  बस तू ही एक थी जिससे मैं 

ईश्वर की खोज

ईश्वर की खोज Drawn By :- Shashank Shekhar Barik साल भर बाद जब मेरा जन्मदिन आया। तब माँ ने सुबह - सुबह ईश्वर का प्रसाद खिलाया। माँ : तूने केवल जीया है नए दौर का नया ज़माना। इसलिए शायद तूने कभी ईश्वर को नहीं माना। पर इस जन्मदिन मैं चाहती हूँ, तू शीश झुकाकर जाए। जग के पालनकर्ता के आशीष उठाकर लाए। मैंने बोला : माँ की बातें नहीं टालना लोग जहां के कहते हैं। पर ये तो बता दे माँ, ये ईश्वर कहाँ पर रहते हैं। माँ :- इसी सवाल का जवाब ढूँढ रहे हैं लोग, हर क्षण, हर रोज़। ईश्वर का पता ठिकाना खुद जाकर खोज। ईश्वर के अस्तित्व पर भी जिसको नहीं था विश्वास। मुझ जैसा इंसान चला करने प्रभु की तलाश। जब मैंने लोगों से पूछा कहाँ है ईश्वर का निवास। देकर मंदिर का पता उन्होंने जताया आँखों से विश्वास। अंदर जाकर मैंने देखा लोग थे हक़ीक़त से अंजान। बता रहे थे पूछने पर पाषाण को प्रभु की पहचान। मैंने जाकर पंडित को कहा कि ये तो है केवल पत्थर की मूरत। ये सुन क्रोधित होकर बोला पंडित “तेरी इतनी जुर्रत” सुन कर मेरी अजीब सी बोली

माँ के अंतिम क्षणों में |

माँ के अंतिम क्षणों में  Ramya Krishna एक कहानी सुनाता हूँ, नारी के क्षमता पर। यह कहानी आधारित है, माँ के ममता पर। एक समय की बात है, एक घर में बेटे का जन्म हुआ। परिवार में सबसे ज्यादा, उस माँ का हृदय प्रसन्न हुआ। माँ के साथ ही था उसका लगाव माँ ही थी उसकी रक्षक। माँ ही थी उसकी मित्र, माँ ही थी उसकी शिक्षक। चाँद का टुकड़ा था माँ का बेटा। सूरत थी जिसकी भोली। माँ के अलावा कोई भी नहीं समझता, उसकी अनगढ़ बोली। माँ समझ लेती थी उसके हाव-भाव और भाषा। सुख में, दुख में, किसी भी समय माँ जान लेती, उसकी आशा। हर दिन, जब भी लगती बेटे को भूख और प्यास। बेटे से पहले ही हो जाता, माँ के दिल को एहसास। तब माँ, शेर, बाघ, भालू आदि के नाम के कौर  बनाया करती थी। उसके सामने नाटक करके, पेट भर खाना खिलाया करती थी। जब बेटा रोता था और उसे रात को नींद नहीं आती थी तब माँ सारी रात जाग कर लोरियाँ गुनगुनाती थी। धीरे धीरे बेटा बड़ा होता है। पढ़ाई कर के दुनिया में मशहूर होता है। उन्नति के और करीब और माँ से उतनी ही दूर होता है।