ईश्वर की खोज
Drawn By :- Shashank Shekhar Barik |
साल भर बाद जब
मेरा जन्मदिन आया।
तब माँ ने सुबह - सुबह
ईश्वर का प्रसाद खिलाया।
माँ :
तूने केवल जीया है
नए दौर का नया ज़माना।
इसलिए शायद तूने कभी
ईश्वर को नहीं माना।
पर इस जन्मदिन मैं चाहती हूँ,
तू शीश झुकाकर जाए।
जग के पालनकर्ता के
आशीष उठाकर लाए।
मैंने बोला :
माँ की बातें नहीं टालना
लोग जहां के कहते हैं।
पर ये तो बता दे माँ,
ये ईश्वर कहाँ पर रहते हैं।
माँ :-
इसी सवाल का जवाब
ढूँढ रहे हैं लोग, हर क्षण, हर रोज़।
ईश्वर का पता ठिकाना
खुद जाकर खोज।
ईश्वर के अस्तित्व पर भी
जिसको नहीं था विश्वास।
मुझ जैसा इंसान चला
करने प्रभु की तलाश।
जब मैंने लोगों से पूछा
कहाँ है ईश्वर का निवास।
देकर मंदिर का पता उन्होंने
जताया आँखों से विश्वास।
अंदर जाकर मैंने देखा
लोग थे हक़ीक़त से अंजान।
बता रहे थे पूछने पर
पाषाण को प्रभु की पहचान।
मैंने जाकर पंडित को कहा कि
ये तो है केवल पत्थर की मूरत।
ये सुन क्रोधित होकर बोला पंडित
“तेरी इतनी जुर्रत”
सुन कर मेरी
अजीब सी बोली।
एक महान पंडित ने
जुबान अपनी खोली।
पंडित :-
मेरा बोलना जरूरी है,
आस्तिक नास्तिक के रण में।
ईश्वर तो बसते हैं
पूरे विश्व के कण - कण में।
इतना सुन नीचे बैठ मैंने,
अपने पाँव मूरत की ओर कर दिया।
मेरे प्रति उनका क्रोध
अति घोर कर दिया।
पंडित :-
ईश्वर की ओर पाँव करने पर
तुम्हें पाप लगेगा।
हम सभी पंडितों का
तुमको श्राप लगेगा।
मैंने बोला :-
अभी आप ही ने तो कहा कि
ईश्वर हैं सारे जहां में।
तो आप ही बताएँ,
रखूँ पाँव कहाँ मैं?
इस सवाल का जवाब जब
कोई नहीं दे पाया।
तब वहाँ से निराश मैं
वापस लौट आया।
मंदिर का विवाद मुझमें
एक सवाल संजोता है।
आज विज्ञान के युग में भी
क्या भगवान होता है?
मुझ पर थी मेरे
गुरु की अनुकंपा।
इस कारण प्रकट की मैंने
उन पर अपनी शंका।
गुरु :-
ये तो मानने के ऊपर है
आज ऐसा ही विधान है।
मान लो तो ईश्वर
नहीं तो मात्र पाषाण है।
बुराई हेतु अच्छाई है,
ये प्रकृति का विधान है।
अगर इस दुनिया में शैतान है
तो शत प्रतिशत इंसान है।
एक काम करो तुम जाओ
मेरे उस्ताद के पास।
शायद मिल जाए तुम्हें
तुम्हारा सही जवाब।
मैंने उस्ताद जी के पास जाकर बोला :-
उस्ताद जी, मेरे दिलोदिमाग में
एक संग्राम होता है।
आप मुझे बताएं
क्या भगवान होता है?
उस्ताद :-
इससे पहले मैं बताऊँ
क्या भगवान होता है?
तुम मुझको बताओ
भगवान क्या होता है?
मैंने बोला :-
वो ताकत जिसने
हमें बनाया…
खुशियाँ दी, गम हरे,
हर खतरे से बचाया।
उस्ताद :-
तुम्हें तुम्हारे
माता - पिता ने बनाया।
खुशियाँ दी, गम हरे
हर खतरे से बचाया।
माता - पिता ही हैं
अल्लाह - मौला और भगवान।
इन्हीं के चरणों में है
पावन हज़ और चारों धाम।
उस्ताद जी के जवाब ने
मेरे मन को ऐसा भाया।
मानो रेगिस्तानी धूप में
किसी वृक्ष की ठंडी छाया।
मैंने सोचा - जिस भगवान को
ढूँढा मैंने पूरे दुनिया भर में।
आखिर वो भगवान मिला
मुझको मेरे घर में।
“घर मेरा है मंदिर,
माता - पिता भगवान”
मुझ जैसे हज़ारों लोग,
इससे हैं अंजान।
जवाब मिलने के बाद मैं
थोड़ा सा मुस्कुराया।
घर आने पर माँ ने पूछा
“क्या ईश्वर को ढूँढ पाया?”
माँ के पाँव छूकर कहा :-
“दुनिया का तो पता नहीं
पर अपने प्रभु को पा लिया।
तुझे दिया वादा मैंने
सफलता से निभा लिया।”
-दीपक कुमार साहु
-Deepak Kumar Sahu
11:00:11 PM
14/04/2015
शब्दार्थ :-
- दौर - Era
- पालनकर्ता - Caretaker
- क्षण - Moment
- पाषाण - Hard Stone
- जुर्रत - Dare
- आस्तिक - One who believes in God
- नास्तिक - One who doesn't believes in God
- अनुकंपा - Mercy
- शंका - Doubt
- विधान - Rules
Comments
Post a Comment