Art By : Amrita Patnaik |
दिसम्बर की ठंड
और मुझसे दूर तुम।
मानो खुद के ही शहर में
हो गया मैं गुम।
आज भी हर सुबह, वो शाम याद आए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
कड़कती ठंड में भी तुम जैसे,
सुबह की हल्की धूप।
ढलती शाम में भी
निखरते चाँद का प्रतिरूप।
वो सारे शाम, जो हमने साथ बिताए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
साथ चलते - चलते उस शाम,
तुमने चाय की फरमाइश की।
और मेरे ना कहने की तो
कोई गुंजाइश न थी।
बहुत खूबसूरत लगती हो जब,
होठों की मुस्कान, आँखों में आ जाए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
बनते चाय में आता उबाल,
जैसे तुम्हारे नाक पर गुस्सा।
छोटी - मोटी नोकझोंक,
वो भी हमारे प्यार का हिस्सा।
तेरा मुझे डाँटना, आज भी मुझे रिझाए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
दोनों हाथों से चाय का गिलास पकड़कर,
तुम्हारा वो प्यार से फूँक लगाना।
उन प्यारी - प्यारी अदाओं से
दिल में मीठा हूँक उठाना।
फिर गिलास को चूमती वो गुलाबी होंठ, हाय!!!!
तुम, मैं और दो कप चाय ।
हर चुस्की पर सुकून से तेरा,
वो आँखें बंद कर लेना।
और खुली आँखों से तुम्हें
तकते - तकते मेरा जी भर लेना।
चुस्कियों के बीच हमारी वो बातें,
कोई भुलाए तो कैसे भुलाए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
“मीठी और कड़क”
वो चाय थी या तेरा स्वभाव।
यूँ छोटी - छोटी बातें लिखना
ये सिर्फ कविता है या “प्रेम के भाव”?
सच तुमसे दूर रहना, मुझको खूब सताए,
तुम, मैं और दो कप चाय ।
वो दस रुपए की चाय थी पर,
उस वक़्त का मोल लगाना मुमकिन नहीं।
उसकी खूबसूरती और मेरा प्यार,
शब्दों में बताना मुमकिन नहीं।
काश फिर एक शाम, कर दो मेरे नाम,
करके कोई ऐसा उपाए,
कि बस तुम, मैं और एक कप चाय।
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
27/12/2018
5:16:30 PM
Accha tha ....saach me kuch waqt ka mol lagaya nehi ja saktha hey
ReplyDeleteThanks a lot Vinny 😍
DeleteMast hai...
ReplyDeleteQuite the poet Deepak Sahu...
Hehe thanks bhai
DeleteAcha he ... Chai hamari n wo chai wali tmhari
ReplyDelete😅😅😅Usko chhodo... Aap hi chalo chai pe😅
DeleteSharam karo thoda ...
DeleteNice bhai....
ReplyDeleteLove for chai😍☕☕
ReplyDeleteHehe thanks 😇😇
DeleteAs mast as always
ReplyDeleteThanks bhai 😇
DeletePlease do not post such advertisement in my comment box
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