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Showing posts from 2019

वो प्यार न था।

Drawing by Shiva Rajak बडा मंझा सा था वो सब,  जवाब हाँ :" था   साफ इनकार न था, वो कुछ दिनों का था  जो प्यार न था । हैसियत से बंधी थी  इस बंधन की जोड़ी, फरेब ,झूठ से संझि , इश्क़ बेकार ही था वो प्यार न था। काल्पनिक ख्यालो को गूंद  करने भर की कोशिश थी,  उसकी एक दिल को दूसरे दिल  से जरूरत पूरी करने तक की साजिश थी, उसकी इश्क़ मेरी तरफ से साफ था,  जो एक तरफा था बस, वो प्यार न था। सुना था , यादों का नही होता अंत, वो किसी से भी हो, सच्चा इश्क़ हो तो , तो हो जाता है अनंत। दूर जाए कोई भी इश्क़ में,  तो खामोशियाँ सर चढ़ चीख उठती है, सच में क्या? मेरे कहानी में तो ऐसा कुछ न था, सच कहूँ,  यार वो प्यार न था। वो सब कुछ दिनों की जुगलबंदी, विश्वास घात से बंधी, और इंसानियत नाते सच में अंधी ये रूह के भूख से सजी, सब बेकार ही था, सब बेकार ही था, वो जो था न ,सच में प्यार न था। वो प्यार न था। `Writer  Shiva rajak.  29 nov. 2019  8:51 pm.

Chandravansh Aur Suryavansh

हमारे पुराणों में हमने कई राजाओं की कहानियाँ सुनी है। उनमें से ज्यादातर राजा या तो सूर्यवंश के होते हैं या तो चंद्रवंश के। लेकिन चंद्रवंश और सूर्यवंश की शुरुआत बहुत कम लोगों को ज्ञात है।  ब्राह्मण की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। यही कारण है कि उन्हें परम पिता भी कहा जाता है। ब्रह्मा ने ही दक्ष प्रजापति की रचना की थी और ब्रह्मा को ही कश्यप मुनि और सूर्य का पिता माना जाता है। पृथ्वी का पहला पुरुष "मनु" को भी ब्रह्मा का वंशज माना जाता है। इसी तरह सूर्यवंश की शुरुआत हुई जिसमें कई महान राजाओं ने राज किया। उदाहरण दिलीप ने धर्म स्थापना में मुख्य किरदार निभाया था। उन्होंने गो रक्षा की थी। राजा हरिश्चंद्र भी सूर्यवंशी थे। उन्होंने अपनी सच्चाई से और वादा निभाने की क्षमता से सूर्यवंश का नाम बहुत ऊँचा कर दिया। सूर्यवंश के एक और राजा थे रघु। उन्होंने अपने राज में काफी दान - पुण्य किया था। उनके नाम पर ही उनके वंश का नाम रघुकुल पड़ा। इसी वंश में एक राजा थे जिनका नाम था "अज"। वे अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते थे कि अपनी पत्नी के देहांत के बाद उन्होंने खुद भी जल समाधि ले ली

Wo Madhosh Thi Itna

वो मदहोश थी इतना क्या बताऊँ?  वो मदहोश थी इतना  अपनी आवारगी में, मैं चला था उसके पीछे  इश्क़ की बेबसी में  मिला सिला उसकी तरफ से जब, सबक भी बना ,सिलसिला  भी मैं बन गया, उस दिन बाद जो उससे रूठा मैं, हर दिन उससे रूठता रह गया। क्या बताऊँ, वो मदहोश थी कितना, कि वक़्त बिताता गया।  वो आसमान पे आसमान छूती गई, मैं ज़मीन पे खड़ा उसे देखता रह गया, और गुम वो आसमान में हो गई। मैं भी मदहोश था उसके इश्क़ में इतना, कि उसे वक़्त रहते मैं रोक ना पाया, ढूढता रह गया उसे अपने आस-पास , और वो अपने सपनों को पूरा  कर चैन की नींद सो गई। वो मदहोश थी इस कदर  सपनों की उड़ान भरने को, कुछ ना दिखा उसे  सिवाए आसमान छूने को। सीखा गई वो , सपनों का महत्व जाते- जाते मेरी ज़िन्दगी से इस कदर, मैं चल पड़ा अपने सफर, वो चल पड़ी अपने सफर। वो मदहोश थी  इतना  के मदहोश कर गई।♥ लेखक- शिवा रजक दिनांक: 21अगस्त '2019            2:17 am

Virasat

विरासत। एक सफर, एक मंज़िल, राहें कई पर भटकने को, हर कोई है लड़ा पड़ा,  दूजे की पुश्तेनी हड़पने को। अजी क्या रिश्ते,  क्या खून का सबका होना लाल, बिक जाते है ,सारे वसूल यहां, फिर बचा ही क्या रह जाता गवाने को। वक़्त पर मदद कोई नहीं करता, पत्थर मारने जरूर पर सब बेवक़्त आते हैं, कुछ तो बस युही मुस्कुरा देते हैं और हौसले पस्त कर जाते हैं। वो देख चुका होता इतना, समझ उसे भी अब सब आ जाता है, बचता आखरी में रहता कोई, पर इंसानियत उसमें से मर जाती है, एक यही विरासत है इंसान की  जो समय समय पर सब सिखलाती है। लेखक- शिवा रजक 14/08/2019 11:15 pm.

भीष्म की कहानी

Art By : Ananya Behera रिक्शा में बैठ मैं भीषण दोपहर में। कर रहा था विचरण अनजाने शहर में। इसी बीच शहर के बीच एक चौराहा आया। ईश्वर के आशीष जैसे हाथों ने हमें अटकाया। दोपहर के बारह बजे सहकर इतने ग्रीष्म को। खड़ा था एक ट्राफिक पुलिस काया मानो भीष्म हो। कड़ी धूप को शायद उसने मान लिया था जन्नत। इसीलिए अविरल अकेले कर रहा था इतनी मेहनत। कभी हाथ दिखाकर एक तरफ को रोकना। नियम तोड़ने पर दुष्ट लोगों को टोकना। किसी ओर भीड़ ना हो जाए हर वक़्त रखता वो इसका खयाल। भले ही चिल्ला - चिल्ला कर होय बेहाल खुद का हाल। इसके आगे और क्या सुनाऊँ उस भीष्म की कहानी। कड़ी धूप में सर से पाँव पसीने से पानी - पानी। देख कर लगा उसे थकान और गुस्से में चूर होगा। प्रचुर हिम्मत वाला ये इंसान मशहूर तो नहीं मगरूर होगा। इसी बीच धीरे-धीरे एक ओर से एक स्कूल बस गुजारता है। उसमें बैठा हर बच्चा हस्ते हुए उस पुलिस को टाटा - टाटा करता है। खिड़की से हाथ निकालकर बच्चे करते अपनी खुशी का निष्पादन। हँसते हुए ट्राफिक पुलिस आगे आकर करता उनका अभिवा

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है - अध्याय 3

अध्याय 3 हम बुआ के घर पहुँच चुके थे। अंदर घुसा तो मैंने देखा कि इन छह सालों में बहुत कुछ बदल चुका था। उनकी जो लंबी चौड़ी ज़मीन थी उस पर उन्होंने दो तल्ला छत का घर बना लिया था। जिसमें छह कमरे, तीन स्नानघर और एक छत थी। सामने एक खुला आँगन था जिसमें एक हैण्डपम्प था जिसे वहाँ के लोग चापाकल भी कहते हैं। उस आँगन में एक अमरूद का पेड़, एक अनार का वृक्ष और चार - पाँच अलग प्रकार के फूल के वृक्ष या ये कह लो कि पौधा था। उस बड़े से आँगन के आगे इन्होंने दो छत के गोदाम बनाए थे। उन दो गोदामों के बीच एक संकरा रास्ता निकलता था जो आगे एक और खुले आँगन की ओर खुलता था। और उसी के आगे थी सड़क। आगे के दो गोदाम इन्होंने भाड़े में दिए थे। मैंने अंदर जाकर बुआ, फुफा जी के चरण स्पर्श किए। मेरी बुआ के तीन बेटे हैं। सबसे बड़े का नाम श्याम। मंझले का राम और छोटे बेटे का नाम कृष्णा। इनके अलावा एक बेटी भी है। जिनका नाम है इंदु। इंदु दीदी की शादी बहुत सालों पहले हो चुकी थी। मैंने इनके भी चरण स्पर्श किए। मैंने देखा कि शादी जैसा कोई माहोल ही नहीं था। सभी आलस्य में बैठे हुए हैं। मैंने तभी अपनी मानसिकता बदल ही ली।

वक़्त आने को है...

ढल जाएगी दिन शायद, शाम आने को है, उम्र गुज़र रही है, धुंधले हो रहे हैं नज़रे भी, लगता है, वक़्त आने को है। शैतानियाँ हो गई बहोत, फ़र्ज़ भी बहोत निभा लिए, अब बच्चे फ़र्ज़ निभाने को हैं, आँखें बंद होने को है, लगता है वक़्त आने को है। दिन कम बचे हैं, न और कुछ पाने को है, बस अब सब खोने को है, मेरा समय जाने को है, अब मेरा वक़्त आने को है। मेरा वक़्त आने को है। Writer Shiva rajak 2june 2019

मेहनत की कीमत

आज एक कहानी सुनाता हूँ, जिसमें एक सुंदर झोपड़ है। है जिसमें एक मेहनती बाप और एक बेटा जो लोफर है। पिता अपना पेट काट - काटकर थोड़े पैसे जुटाता था। उन पैसों को चुराकर बेटा, हर महीने हजारों रुपए उड़ाता था। बुरी संगति का निखरता असर उसके ऊपर यौवन का जोश। दिखावटी प्रवृत्ति में ही बेटा रहता था मदहोश। बेटे का जीवन था मानो, चंद्र ग्रहण की निशा। बहुत बुरी थी उसकी दशा। बिल्कुल गलत थी जिसकी दिशा। एक रात बेटा फिर खोल रहा था तिजोरी। पिता ने अब पकड़ ली बेटे की चोरी। पिता गुस्से से कहता है मैं हर दिन खून पसीना बहाता हूँ। तब जाकर तेरे भविष्य के लिए। कुछ पैसे जुटा पाता हूँ। बेटा कहता है - ये पैसा तो मेरे लिए है तो क्यूँ आप अकड़ रहे हैं। इस छोटी सी बात को इतना क्यूँ पकड़ रहे हैं। बाप कहता है - जीवन की असलियत से तू बिलकुल है अंजान। इसीलिए तुझे लगता है पैसा कमाना है बिलकुल आसान। पिता : तो ठीक है, मैं भी देखना चाहता हूँ, तेरे नसीब में क्या है लिखा। तू हजारों रुपए उड़ाता है ना, चल पचास रुपए कमाकर दिखा। अपने जीवन में आत्मसम

कहानी अभी खत्म नहीं हुई है - अध्याय 2

अध्याय 2 हम सभी बड़े थक गए थे। मैंने सोचा, कोई ना कोई लेने जरूर आएगा हमें रेल्वे स्टेशन। मैं गलत था। कोई भी नहीं पहुँचा। हम थके मांदे स्टेशन से बाहर निकले। स्टेशन की गेट पर हमने सामान रखा। तब पापा कोई रिक्शा लेने गए थे यहाँ मैं पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था। हमारे बोतल का पानी खत्म हो गया था। मैंने भी सोचा अब बुआ के जाकर ही पी लेंगे। इतने में पापा आए रिक्शा नहीं बल्कि मिठाई लेकर। कहने लगे बहन के घर खाली हाथ कैसे जाएँगे। फिर वो रिक्शा लेने गए। रिक्शा और वो भी बिहार का मेरे लिए खासा परेशानी का सबक बन चुका था। एक छोटी सी घटना मुझे याद है, पिछली बार जब मैं यहाँ आया था, तब पिताजी ने दो रिक्शा किया था, हम चार लोगों के लिए। बेगूसराय और सम्बलपुर, इन दो शहरों के रिक्शा में बहुत फर्क़ है। रिक्शा का तल जिसपर हम पैर रखते हैं, सीट पर बैठने पर, वह सम्बलपुर के रिक्शे में तो समतल होती है पर बेगूसराय के रिक्शे में वह तल 45° के कोण में नीचे की ओर झुकी हुई होती है। उस वर्ष मैं और माँ एक रिक्शे पर थे। मुझे ऐसे रिक्शे का अनुभव नहीं था। मैं जैसे ही पैर रखता पैर फिसलने लगता था। मैं बगल वाली