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Virasat

विरासत।

एक सफर, एक मंज़िल,
राहें कई पर भटकने को,
हर कोई है लड़ा पड़ा, 
दूजे की पुश्तेनी हड़पने को।

अजी
क्या रिश्ते, 
क्या खून का सबका होना लाल,
बिक जाते है ,सारे वसूल यहां,
फिर बचा ही क्या रह जाता गवाने को।

वक़्त पर मदद कोई नहीं करता,
पत्थर मारने जरूर पर
सब बेवक़्त आते हैं,
कुछ तो बस युही मुस्कुरा देते हैं
और हौसले पस्त कर जाते हैं।

वो देख चुका होता इतना,
समझ उसे भी अब सब आ जाता है,
बचता आखरी में रहता कोई,
पर इंसानियत उसमें से मर जाती है,

एक यही विरासत है इंसान की 
जो समय समय पर सब सिखलाती है।

लेखक-
शिवा रजक
14/08/2019
11:15 pm.

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