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शर्मा जी का लड़का


शर्मा जी का लड़का 

शर्मा जी के लड़के को हर कोई काबिल बताता है, 
ना किसी से उसका नाता है, ना किसी से बतियाता है... 
बचपन से हँसमुख लड़का किसी बड़े इमारत में बैठे, 
आज हर पल घबराता है, डर डर के मुस्कुराता है... 
लंबी जिम्मेदारियाँ लेने की उसमें हिम्मत नहीं, 
वो छोटे पौधे लगाता है पर पेड़ नहीं लगाता है... 
अब छोटी खुशियाँ उसे खुश नहीं करती, 
वो खामियाँ ज्यादा गिनाता है, शुक्र कम मनाता है... 
आने वाले कल की फ़िक्र में जागते-जागते, 
वो देर तक सो जाता है पर सपने नहीं सजाता है... 
उलझा है अपने नौकरी में कुछ इस तरह कि 
खाना जरूर खाता है पर स्वाद नहीं बताता है... 
जीवन की इस होड़ से निकलने की चाह में, 
वो फॉरम तो भर आता है पर सवाल नहीं लगाता है... 
गर्मी की धूप और बारिश की बूँद उसे याद करती है, 
वो पतंग नहीं उड़ाता है, अब छाता ओढ़ के आता है... 
त्योहारों की खुशियाँ देखे बरसों बीत गए, 
वो घर तो नहीं जाता है, पर पैसे खूब कमाता है... 
जैसे किसी को उम्र कैद की सजा मिली हो, 
वो ऑफिस से लौट के आता है और बत्ती खुद जलाता है...
किसी ने कहा था "इन शब्दों के कोई पैसे नहीं मिलेंगे", 
वो कलम तो उठाता है पर ग़ज़लें नहीं बनाता है... 
किसी पे भरोसा किए ज़माना बीत गया, 
वो हाथ जरूर मिलाता है पर दोस्त नहीं बनाता है...
फिर महीने की आखिरी तारीख को जब, 
वो पैसे घर भिजवाता है, और परिवार का राशन आता है, 
तब सबकुछ भूलकर, 
अगले दिन शर्ट की जेब पर वही कलम लगाकर, 
शर्मा जी का बेटा उठकर ऑफिस जाता है... 

-दीपक कुमार साहू 
5th Oct 2025
08:38:51 PM


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