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About


from his desk...

"for me, Poetry is spontaneous overflow of emotions. Poetry is a way to express one's thought. Its an art to convey one's feelings through a beautiful rhythm. A Poem is a medium to say a lot in a little.The world is changing day by day and so are the relations and emotions of people.So keep writing, keep expressing..."

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  • Presently, Deepak is pursuing his B.Tech. degree in Civil Engineering from the Veer Surendra Sai University Of Technology, Burla.Apart from being a Poet, he is a Developer, Novelist, Blogger and Script Writer.

    His field of interest includes:
    C C++ Java Oracle SQL HTML CSS JavaScript PHP

Popular posts from this blog

तुम, मैं और दो कप चाय।

Art By : Amrita Patnaik  दिसम्बर की ठंड और मुझसे दूर तुम। मानो खुद के ही शहर में हो गया मैं गुम। आज भी हर सुबह, वो शाम याद आए, तुम, मैं और दो कप चाय । कड़कती ठंड में भी तुम जैसे, सुबह की हल्की धूप। ढलती शाम में भी निखरते चाँद का प्रतिरूप। वो सारे शाम, जो हमने साथ बिताए, तुम, मैं और दो कप चाय । साथ चलते - चलते उस शाम, तुमने चाय की फरमाइश की। और मेरे ना कहने की तो कोई गुंजाइश न थी। बहुत खूबसूरत लगती हो जब, होठों की मुस्कान, आँखों में आ जाए, तुम, मैं और दो कप चाय । बनते चाय में आता उबाल, जैसे तुम्हारे नाक पर गुस्सा। छोटी - मोटी नोकझोंक, वो भी हमारे प्यार का हिस्सा। तेरा मुझे डाँटना, आज भी मुझे रिझाए, तुम, मैं और दो कप चाय । दोनों हाथों से चाय का गिलास पकड़कर, तुम्हारा वो प्यार से फूँक लगाना। उन प्यारी - प्यारी अदाओं से दिल में मीठा हूँक उठाना। फिर गिलास को चूमती वो गुलाबी होंठ, हाय!!!! तुम, मैं और दो कप चाय । हर चुस्की पर सुकून से तेरा, वो आँखें बंद कर लेना। और खुली आँखों से तुम्हें तकते - तकते मेरा जी...

छठ पूजा

Image Generated by Meta AI रहे दुनिया में कहीं भी पर इस दिन संग आते हैं  बिखरे बिखरे मोती छठ के धागे में बंध जाते हैं...  ये चार दिन साथ पूरा परिवार होता है,  कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है...  भोरे भोर नहाकर सब कद्दू भात खाते हैं,  सात्विक भोजन का अर्थ सारी दुनिया को समझाते हैं,  साफ़ हमारा अच्छी तरह घर द्वार होता है,  कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है...  लकड़ी के चूल्हे पर खरना का प्रसाद बनाते हैं  बच्चे बूढे रोटी खीर, केले के पत्ते पर खाते हैं  दिनभर की भूखी व्रती का ये एकमात्र फलाहार होता है  कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है...  अगले दिन, बाँस की टोकरी में सारे फल सजाते हैं  विश्व-प्रसिद्ध, सबसे स्वादिष्ट, ठेकुआ हम पकाते हैं...  पाँव में अलता और सिंदूर का श्रृंगार होता है  कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है...  मैथल - मगही में सभी लोकगीत गाते हैं  अमीर - गरीब नंगे पाँव चलके घाट आते हैं सर पर रखा दउरा जिम्मेदारी का भार होता है कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... फल फूल, धूप कपूर, घाट पर शोभ...

मेरे सपनों का भारत...

मेरे सपनों का भारत Art By Ananya Behera Drawn By : Anwesha Mishra कल रात को मैंने एक सपना देखा। सपने में वतन अपना देखा। मैंने देखा कि भारत बन गया है विकासशील से विकसित। जहाँ बच्चे से लेकर बूढ़े सभी थे शिक्षित। लोग कर चुका कर अदा कर रहे थे अपना फर्ज़। और काले धन से मुक्त होकर भारत पे नहीं था करोड़ों का कर्ज़। मेरे सपने में तो भारत अमेरिका के भी विकास के करीब था। उस भारत में, हरेक के पास रोज़गार और कोई नहीं गरीब था। जहाँ हर ओर मज़बूत सड़क, ऊँची इमारत और खेतों में हरयाली थी पर्याप्त। जहाँ विज्ञान का विकास और सर्वश्रेष्ठ थी यातायात। जहाँ उच्चतम तकनीकी विकास और विकसित था संचार। जहाँ नेता भलाई करते थे और शून्य पर था भ्रष्टाचार। मेरा सपना यहीं तक पहुँचा था कि हो गयी भोर। मेरी नींद टूट गई सुनकर गली में एक शोर। गली में कोई ऐसा गर्जित हुआ। कि स्वप्न को छोड़, वास्तविक भारत की ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। इस शोर ने मुझे देर से सोने की दे दी थी सजा। मैंने खिड़की खोलकर देखा कि शोर की क्या थी वजह? मैंन...