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Showing posts from 2022

आकांक्षा

रोज नई चुनौती, उथल-पुथल, जीवन में कोलाहल चाहता हूँ  फिर भी स्वभाव, अपना मैं, निर्मल और शीतल चाहता हूँ...  गिनती में भले अधिक हो, द्वारका की नारायणी सेना,  निहत्थे कृष्ण जहाँ उपदेश दें, मैं तो वही दल चाहता हूँ  सही और गलत की, सही परख कर सकूँ, अपने अंदर ईश्वर से, बस इतनी सी अकल चाहता हूँ... कब तक ये खामोशी, चुभती रहेगी हमारे बीच  तेरे मेरे झगड़े का मैं, अंतिम कोई हल चाहता हूँ...  किसी का दमन करने का, मुझको कोई शौक नहीं पर,  आत्मरक्षा कर सकूँ, इतना तो बल चाहता हूँ...  इंसान और इंसानियत पे, फिर से भरोसा करने लगा हूँ  टूट जाऊँ फिर से, ऐसा कोई छल चाहता हूँ... पढ़कर मेरे लेखन को तुम, हँस भी दो और रो भी दो, जिंदगी में बस इक दिन, ऐसा ही एक पल चाहता हूँ... जिन लोगों ने बीते कल में, मुश्किल में भी साथ दिया  सिर्फ उन्हीं के साथ मैं अपना, आने वाला कल चाहता हूँ ...  -दीपक कुमार साहू  6th December 2022 11 : 51 PM

Shayari No. 87

 पहले तस्वीर कोई एक लेता था,  और देखते सभी थे...  आज तस्वीर सभी लेते हैं, पर देखता कोई नहीं...

Shayari No. 86

  We all are searching for that LIGHT  in our life...  which is worth dying for...  which is worth living for...

My Dear Love

You make my lips smile Just with a love text, And I ask myself Why are you so perfect? You drifted into my heart Leaving me insane, Every time I see you I fall for you again... I crave for you badly Wanting us to unite, Like the comforting pillow  That I hug in the night... You with me still feels Just like a dream, I wake up with ur thoughts With every morning's beam... My feelings for you  are growing so deep, You are the only reason Behind my lack of sleep... I see my world in you As you are my life, Proposing here by Will you be my wife ?

As I Flew Over Kiev

  March arrived and I started my journey back home in a jolly mood After spending a comfortable winter in the lovely place of Hirakud With a wish again to return next winter, here or perhaps some other place India is a beautiful country, after all, can’t find anywhere such solace My country is beautiful too, but the winters harsh A bird that I am, can’t dare to bear the weather’s wrath   But as I started my travel, I sensed things were not the same as they were Where there was peace before, Oh! How tensed people were The students worried about jobs in future, the govt about what steps to take I saw some mothers crying for their children, a fear of separation, I saw fathers concerned about the safety of their sons and daughters But what was wrong, what was happening, it was beyond my comprehension   I crossed India into Pakistan and there was the same old power game, same instability I went then into Central Asia, and it was all great, with lovely scenes ju

मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए...

पल भर के लिए मुझको देख  कितना खुश हो जाती थी। घंटों बातें करते करते मेरे  आँखों में खो जाती थी। आँखों में तेरी मुझे वही इकरार चाहिए  मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए कॉलेज के बहाने हमने कितनी फ़िल्में देखीं हैं। सिर्फ तुमको मुझको मालूम है कि  फ़िल्में किसने देखी हैं?  थिएटर के भीतर वाला, वही अंधकार चाहिए,  मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए तेरी तस्वीरें ले ले कर   खुद खिंचवानी भूल जाता था।  तेरी उँगली, से भी जब  मेरा फोन खुल जाता था।  फोन पर मेरे, तेरा फिर, वही अधिकार चाहिए  मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए लुडो खेलते-खेलते, मैं तेरी  गोटी मार ना पाता था।  तेरे जीतने पर झूठ मूठ का  मुह बना के रूठ जाता था।  तेरी वो मुस्कान जीतकर, मुझको हार चाहिए,  मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए जब हम मिले थे तब  उम्र छोटी थी पर इरादे पक्के थे।  मासूम इश्क में हमने तो  बच्चों के नाम सोच रक्खे थे।  आज भी मुझे तेरे साथ पूरा परिवार चाहिए  मुझको मेरे हिस्से का वही प्यार चाहिए मेरी छोटी बड़ी हर कामयाबी  तुमको पहले बताता था।  तुम खुशी से ट्रीट माँगती,  और मैं डेट पे ले जाता था।  फिर से मेरी खु

Shayari No. 85

  काश हर रोज मेरा जन्मदिन होता, इसी बहाने तुम मुझे एक फोन तो करती...

Shayari No. 84

  छोटी-छोटी बातों से ही खुश रहते थे कभी, छोटी-छोटी बातों पर तुम अब अक्सर रूठ जाती हो..

Shayari No. 83

  लड़ झगड़ कर करता था, घर से दूर जाने की बात,, आज परदेश में पैसे कमाने के बाद, घर की याद आती है।

Shayari No. 82

  वो बात करे मुझसे तो शायरी बन जाती है, सजती वो है, कविता मेरी बन जाती है, इसे प्यार नहीं कहेंगे तो कहेंगे क्या? हँसती इक बार वो, गज़ल ढ़ेर सारी बन जाती है...

Shayari No. 81

  करने लगी खुद से और भी प्यार, रखने लगी खयाल और भी ज्यादा  .  .  देखा है जब से मैंने खुद को तेरी आँखों से....

Shayari No. 80

  राधेश्याम से बढ़कर प्रेम की मूरत नहीं है, सुंदरता को तेरे प्रमाण की जरूरत नहीं है,  कहती है पगली "कोई सुंदर नहीं मैं...",,  तू हँस दे इक बार... फिर कोई खूबसूरत नहीं है...

Shayari No. 79

  जुदा होकर तुमसे रातें कभी यहाँ तो कभी वहाँ गुजारता है, तुम्हें घर मानने वाला लड़का आज मुसाफिर हो गया...

Shayari No. 78

  बातें करते करते तुम खुले बाल बांधने लगी, अब तुम्हें शिकायत है कि मैंने कुछ भी सुना नहीं...  

Shayari No. 77

  वो झूठ बोले फिर भी सच्चा लग रहा है...  रोते हुए आज फिर बच्चा लग रहा है...  किसी ने कहा कि तुमने उसे छोड़ दिया,  बुरा हुआ पर सुन के अच्छा लग रहा है...

Shayari No. 76

  तुम थी तो चिढ़ता था मैं दुनिया के रीति रिवाज से,  तुम्हारे जाने के बाद खुद को इन्हें सौप आया हू  

Shayari No. 75

  रातों के अंधेरों में, अकेला गुजर जाता हूँ...  भूतों का भय नहीं पर आदमी से डर जाता हूँ...  मैं जीत नहीं सकता तुझसे लड़ाई में रानी,,  तलवार रोक लेता हूँ पर आँखों से मर जाता हूँ...

कुर्बत

जाते हुए हमेशा तुम कसकर गले लगाती हो,  अपना कुछ हिस्सा तुम मुझमें छोड़ जाती हो… वैसे तो सब मुझे शरीफ समझते हैं मगर,  तुम दोस्तों के सामने मेरा भंडाफोड़ जाती हो...  दूर रहने से वैसे कोई गिला नहीं मगर,  तुम फोन नहीं उठाती हो और दिल तोड़ जाती हो...  इतनी प्यारी सी हो तुमसे गुस्सा करें कैसे  तुम मुस्कराती हो और नाता जोड़ जाती हो...  जब भी गलत दिशा में मैं आगे बढ़ने लगता हूँ,  हाथ पकड़कर मेरा तुम रस्ता मोड़ जाती हो… मैं हर बार जब तुमसे मिलने आता हूँ,  तुम दूर से ही देख कर हँसकर दौड़ जाती हो...   जाते हुए हमेशा तुम कसकर गले लगाती हो,  अपना कुछ हिस्सा तुम मुझमें छोड़ जाती हो...  -दीपक कुमार साहू  30th August 2022 11 50 PM

Shayari No. 74

  मैं रोज सुबह उठकर बिस्तर पर तुम्हें खोजता हूँ,, जैसे किसी रोते बच्चे को तलब हो अपनी माँ की..  

Shayari No. 73

 मैं तुम्हें भूल कर आगे बढ़ रहा था,  फिर किसी ने कह दिया : "तुम अच्छी शायरी लिखते थे " -दीपक कुमार साहू

Shayari No. 72

   हो मेरी भी गलती, वो खुदको दोष देता है, माफ़ी माँग माँग कर खुद को कोस लेता है, मैं ख़ामोश होकर देख लूँ जो उसे भरी आँखों से,,  वो दोनों हाथों से मेरे आंसू पोंछ देता है...

रुख़सत

अब से पहले आँसू शराब में घुलाया ही नहीं था इससे पहले किसी ने मेरा मुँह खुलाया ही नहीं था  इस तरह जन्मदिन पर फोन किया तुमने  जैसे कभी तुमने मुझे भुलाया ही नहीं था  मिलकर भी दोस्त तुम्हारे पराई नजरों से देखते हैं ठीक तरह से तुमने मिलाया जुलाया ही नहीं था  मैंने पुकारा तुमको तो तुमने मुह फ़ेर लिया इस तरह तो किसीने रुलाया ही नहीं था  कुछ इस तरह महफिल से हमने रुख़सत कर दी जैसे इस जलसे में कभी बुलाया ही नहीं था ढक कर चादर फिर सर पर हाथ फ़ेरा माँ ने इस तरह तो किसीने सुलाया ही नहीं था…  -दीपक कुमार साहू  25/05/2022 07:00 PM

ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...

रोज कहकर जाते हैं, आज जल्दी घर आ जाएँगे,  रोज सुबह 9 से रात के 10 बजे जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  ये पता है कि पीछे से वार किसने किया है,  फिर भी चुप चाप ज़ख्म सीए जा रहे हैं,  ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  रोने का मन कर रहा है हमारा,  पर आँसू के घूंट पीए जा रहे हैं,,  ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  अब खुद से प्यार नहीं रहा पर,  दूसरों के खातिर सजे जा रहे हैं,  ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  एक सच है जो हम शुरू से जानते हैं, फिर भी झूठे वादे किए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... ये किताब भी हम पढ़ेंगे नहीं,  ना जाने फिर भी क्यूँ लिए जा रहे हैं?  ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  जानते हैं हम तैय्यार नहीं हैं, फिर भी हर इम्तेहान दिए जा रहे हैं,  ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...  एक जिंदगी है जो हम जीना चाहते हैं, एक जिंदगी हम जिए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं...     ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं… -दीपक कुमार साहू  26/04/2022  05:02 PM

बाकी है...

अभी बस दिन भर काम किया है,  अभी तो पूरी शाम बाकी है...  अभी तो चंद लोग जानते हैं मुझे, दुनिया में करना नाम बाकी है...  मैं हार जाऊँ ऐसा हो नहीं सकता,  जब तक ना जीत लूँ, कहूँगा अंजाम बाकी है...  दो मुलाकात में मुझे राम ना समझ लेना,  अंदर मेरे नटखट घनश्याम बाकी है...  दोस्त शराब पीकर चले गए, मैं बैठा रह गया,  वो आई नहीं उसके आँखों का जाम बाकी है... वो कातिल है, देख ले एक नजर तो मर जाता हूँ,  और दिल भी चुराया है, चोरी का इल्ज़ाम बाकी है  रास्ते पर तुमने नजरअन्दाज कर दिया,  अगली बार मिलना, दुआ सलाम बाकी है… याद है एक बात शुरू की थी तुमने,  उस पर पूर्ण विराम बाकी है...  "अच्छा सुनो..." कहकर तुम चुप हो गई थी,  तुम कहकर जो ना कह पाई वो पयाम बाकी है...  चंद पैसों के लिए खुद को नीलाम किया है,  वक़्त आने दो, मेरा सही दाम बाकी है...  अभी तो बस कुछ शायरी लिखी है,  लिखना पूरा कलाम बाकी है...  तुम दर्द देके अरे कहाँ चल दिये,, याद रखना मेरा इंतकाम बाकी है… -दीपक कुमार साहू  23rd March 2022

Shayari No. 71

  हो दोस्त या हो दुश्मन, सभी संग खेलते हैं,  ये होली का त्योहार है सभी रंग खेलते हैं,  क्या सोच के ना जाने दो देश युद्ध कर रहे हैं,,  जंग का शौक है तो आओ शतरंज खेलते हैं... 

Shayari No. 70

  तेरा रकीब के साथ दिखना कुछ ऐसा कर जाता है, मैं आँखें फ़ेर लेता हूँ फिर भी आँख भर जाता है लोग कहते हैं मुझे शतरंज खेलना नहीं आता,, मैं रानी को बचाने जाता हूँ, मेरा राजा मर जाता है.. 

Shayari No. 69

  ईमानदारी के रास्ते पर कई चोर पड़ जाते हैं,  हर सरकारी दफ्तर में घूसखोर पड़ जाते हैं,  कसम खाई थी सनम से अब बात नहीं करेंगे,,  वो सामने आ जाएं तो हम कमजोर पड़ जाते हैं...

Shayari No. 68

  हो मिलों की दूरी, फिर भी इंतजार में रहते हैं, दिल टूट भी जाए फिर भी प्यार में रहते हैं, सही या गलत कुछ तो किया होगा,, कुछ करने वाले ही अख़बार में रहते हैं... 

Shayari No. 67

  मैं खुदा को मानता था, शायद भूल हुई,  किसी के इंतजार में पूरी जिंदगी फिजूल हुई,  देर से ही सही कल उसका फोन आया था,,  माफ़ करना खुदा, आखिर मेरी दुआ भी कुबूल हुई.... -दीपक कुमार साहू @deepaksahusbp

The Coastal Girl

    She woke up earlier than usual today, the sky was all bright The cold was starting to disappear, and everything seemed alright Finishing up the morning tasks she reached her office soon And worked with unwavering attention till noon. Life was so good to her, she considered herself lucky She had a secure job, great colleagues, and nothing tricky. Oh! she had an office crush too whom she would admire often She craved for his attention, she longed for his glances But she never gathered the courage to tell him what she felt She believed it would look brazen.   She had some lunch, worked again and then returned, It was the same story every day, nothing different The same place, same people, same work, Even weekends were all same, nothing exceptional Watching a movie or web series was the new normal The towering flats, malls and supermarkets which were once exciting Now even they had started to get boring. For she stayed in a PG with a couple of frie