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Showing posts from April, 2021

तुमने जो दी थी बद्दुआ

तुमने जो दी थी बद्दुआ…  हाँ जिससे मैं प्यार करती थी,  उसने मुझको छोड़ दिया।  तुम तो दूर जा ही चुके थे,  उसने भी मुह मोड़ लिया।  तुम जैसे तड़पे थे, मैं भी वैसे तड़प गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  वो कहता है "तुमसे मैं प्यार नहीं करता"  ठीक वैसे ही जैसे, मैंने तुमसे कहा था।  हाँ पता चला मुझे दिल टूटने का दर्द,  वही दर्द जो तुमने सहा था।  मेरे भी दिल में नफ़रत की आग सुलग गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  मन में मेरे भी गुस्सा जागा,  हफ्तों तक ना सोई मैं।  रातों को हाँ तीन बजे तक,  तुम जैसा ही रोई मैं।  किसी के जाने से, जिंदगी इतनी उलझ गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  ना तुम थे… ना वो था…  ना ही कोई और।  मेरे अकेलेपन में था केवल  टिक टिक करते घड़ी का शोर।  प्यार के दरिया में दोस्ती भी झुलस गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई।  अब वो जिस लड़की के साथ है, क्या वो मुझसे अच्छी है??  ये सवाल मुझे अंदर ही अंदर खा रहा है।  तुम्हें भी हमें देखकर कितनी तकलीफ हुई होगी,  मुझे आज समझ में आ रहा है।  देखते ही देखते ये जिंदगी मेरी…. पलट गई,,  तुमने जो दी थी बद्दुआ….. लग गई। 

Shayari No. 19

 आज इतना अकेला लग रहा है, जैसे किसीने बाजार में ये कह कर छोड़ दिया हो कि "यहीं रहना, कहीं जाना मत... मैं थोड़ी देर में आती हूँ.."