वो मदहोश थी इतना
क्या बताऊँ?
वो मदहोश थी इतना
अपनी आवारगी में,
मैं चला था उसके पीछे
इश्क़ की बेबसी में
मिला
सिला उसकी तरफ से जब,
सबक भी बना ,सिलसिला
भी मैं बन गया,
उस दिन बाद जो उससे रूठा मैं,
हर दिन उससे रूठता रह गया।
क्या बताऊँ,
वो मदहोश थी कितना,
कि वक़्त बिताता गया।
वो आसमान पे आसमान छूती गई,
मैं ज़मीन पे खड़ा उसे देखता रह गया,
और गुम वो आसमान में हो गई।
मैं भी मदहोश था
उसके इश्क़ में इतना,
कि उसे वक़्त रहते मैं रोक ना पाया,
ढूढता रह गया उसे अपने आस-पास ,
और वो अपने सपनों को पूरा
कर चैन की नींद सो गई।
वो मदहोश थी इस कदर
सपनों की उड़ान भरने को,
कुछ ना दिखा उसे
सिवाए आसमान छूने को।
सीखा गई वो ,
सपनों का महत्व
जाते- जाते मेरी ज़िन्दगी से इस कदर,
मैं चल पड़ा अपने सफर,
वो चल पड़ी अपने सफर।
वो मदहोश थी
इतना
के मदहोश कर गई।♥
लेखक-
शिवा रजक
दिनांक: 21अगस्त '2019
2:17 am
Beautiful poem Shiva. Heart touching poem
ReplyDelete😊❣️
DeleteWaah re bhaii
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