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Chandravansh Aur Suryavansh


हमारे पुराणों में हमने कई राजाओं की कहानियाँ सुनी है। उनमें से ज्यादातर राजा या तो सूर्यवंश के होते हैं या तो चंद्रवंश के। लेकिन चंद्रवंश और सूर्यवंश की शुरुआत बहुत कम लोगों को ज्ञात है। 

ब्राह्मण की रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। यही कारण है कि उन्हें परम पिता भी कहा जाता है। ब्रह्मा ने ही दक्ष प्रजापति की रचना की थी और ब्रह्मा को ही कश्यप मुनि और सूर्य का पिता माना जाता है। पृथ्वी का पहला पुरुष "मनु" को भी ब्रह्मा का वंशज माना जाता है। इसी तरह सूर्यवंश की शुरुआत हुई जिसमें कई महान राजाओं ने राज किया। उदाहरण दिलीप ने धर्म स्थापना में मुख्य किरदार निभाया था। उन्होंने गो रक्षा की थी। राजा हरिश्चंद्र भी सूर्यवंशी थे। उन्होंने अपनी सच्चाई से और वादा निभाने की क्षमता से सूर्यवंश का नाम बहुत ऊँचा कर दिया। सूर्यवंश के एक और राजा थे रघु। उन्होंने अपने राज में काफी दान - पुण्य किया था। उनके नाम पर ही उनके वंश का नाम रघुकुल पड़ा। इसी वंश में एक राजा थे जिनका नाम था "अज"। वे अपनी पत्नी से इतना प्रेम करते थे कि अपनी पत्नी के देहांत के बाद उन्होंने खुद भी जल समाधि ले ली क्यूँकि वे अपनी पत्नी के बगैर जी नहीं सकते थे।वे अगाध प्रेम की परिभाषा बन गए।

चंद्रवंश की शुरुआत सूर्यवंश से जुड़ी हुई है। सूर्यवंश के एक राजा थे "इक्ष्वाकु"। उनके भाई का नाम था "सुध्युम्न"। वो एक बार शिकार करते हुए घने जंगल में चले गए। उस जंगल पर एक ऐसी जादुई शक्ति थी जिसके वज़ह से कोई भी पुरुष अगर उस जंगल में गया तो वो नारी बन जाएगा। उस जंगल पर वह माया भगवान शिव ने डाली थी क्यूँकी भगवान शिव और माता पार्वती उस जंगल में निजी पल बिता रहे थे। सुध्युम्न गलती से उस जंगल में दाखिल होते हैं और शिव जी की शक्ति से वे एक नारी में परिवर्तित हो जाते हैं। सुध्युम्न भगवान शिव के पास पहुँचकर दया की गुहार लगाते हैं। कहते हैं "मैं एक राजकुमार हूँ और अनजाने में मैं इस जंगल में आ गया। मुझे क्षमा कर दीजिए महादेव"। भोलेनाथ सुध्युम्न पर दया कर के कहते हैं कि "मैं पूरी तरह से तो तुम्हें पहले जैसा नहीं कर सकता। किंतु मैं तुम्हें यह वर देता हूँ कि तुम उत्तरायण में पुरुष रहोगे और दक्षिणायन में स्त्री और तब तुम इला के नाम से जाने जाओगे। सुध्युम्न महादेव से कहते हैं कि "अगर मैं ऐसा ही रहा तो मुझसे विवाह कौन करेगा? इस पर भगवान शिव कहते हैं कि तुम्हें तुम्हारी ही तरह कोई मिलेगा और तब जाकर तुम्हारा वंश आगे बढ़ेगा। इतना कहकर भगवान शिव और माता पार्वती अंतर्ध्यान हो गए। 

कहानी का दूसरा अध्याय यहाँ से आरंभ होता है। जैसा कि हम जानते हैं कि बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है। और उनकी पत्नी का नाम है "तारा"। बृहस्पति हमेशा ध्यान करते रहते थे और अपनी पत्नी की ओर उनका ध्यान बहुत कम था। रात में अकेले तारा चंद्र को निहारते रहती थी। इसी बीच चन्द्रदेव और तारा में प्रेम हो जाता है। दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं। एक रात जब बृहस्पति ध्यान कर रहे थे तब चंद्रदेव तारा को भगा ले गए। काफी महीने बीत जाते हैं। फिर बृहस्पति का ध्यान जब टूटा तब तारा को अपने निकट ना पाकर उन्होंने तलाश शुरू की। तब जाकर उन्हें पता चला कि तारा चन्द्रदेव के पास है। उन्होंने चन्द्रदेव को कहा कि तारा को लौटा दें। चन्द्रदेव नहीं माने उन्होंने कहा कि वे एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं। इस पर बृहस्पति क्रोधित हो गए और देवराज इंद्र के पास चले गए और उन्हें चंद्र से अपनी पत्नी को वापस लाने को निर्देश दिया। बृहस्पति के आज्ञानुसार इन्द्रदेव पूरी सेना लेकर चंद्र के पास पहुँच गए। एक घोर संग्राम हुआ। इंद्र ने चंद्र को पराजित किया और तारा को छीनकर बृहस्पति के हवाले कर दिया। उस समय तारा गर्भवती थी। चंद्र ने कहा कि ये मेरी सन्तान है। बृहस्पति कहने लगे कि ये मेरी सन्तान है। तारा दोनों के बीच चुप खड़ी थी। इसी बीच तारा के गर्भ से में जो संतान था वो गर्भ से ही आवाज लगाता है कि मैं चंद्र का सन्तान हूँ। यह सुनकर बृहस्पति बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र के सन्तान को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि "तू गर्भ में ही इतना बड़बोला है। जा मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू नपुंसक पैदा होगा। तू कभी स्त्री, कभी पुरुष रहेगा।" इसी श्राप के साथ पैदा हुए इस सन्तान को हम सभी बुध ग्रह के नाम से जानते हैं। आगे चलकर बुध का विवाह इला से होता है। इला और बुध के वंशज को चंद्रवंशी कहा जाता है। इसी तरह चंद्रवंश की शुरुआत होती है।

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