Art By : Ananya Behera |
कुछ दिनों बाद मेरे परीक्षा का
परिणाम आना था।
और मुझे मंदिर में, अच्छे नंबर के लिए
भीख माँगने जाना था।
पूजा के लिए फूल चुराए
पड़ोसी के आँगन से।
प्रसाद खरीदा मैंने
पूरे रुपए इक्यावन के।
किस विषय में कितने नंबर माँगू,
इस विचार में, मैं इतना घुल गया।
कि जल्दी - जल्दी में घुसने से पहले,
जूते उतारना भूल गया।
क्रोधित पंडित ने कहा :
“ये सीढ़ियाँ वापस उतर जाओ
और उस पत्थर पर
जूते उतारकर आओ”
मैंने देखा कि हर कोई,
बाहर पड़े पत्थर पर जूते उतार रहा है।
तो अंदर पड़े पत्थर की
आरती उतार रहा है।
मैंने मन में तभी अचानक
एक प्रश्न आया यूँ।
कि दो समान रंग और किस्म के पत्थरों में,
इतना भेदभाव क्यूँ?
फिर कही से आवाज आई :
"जिस कारण की तुझे इतनी आस है,
उस सवाल का जवाब
केवल मेरे पास है”
मैंने अपनी नज़र
दौड़ाई चारों ओर।
तो पता चला कि उस पत्थर ने
मचाया था शोर।
पत्थर ने कहा :-
अगर जानना है तुझे जवाब
अपने सवाल का।
तो तुझे सुनना होगा किस्सा
मेरे जीवनकाल का।
बहुत साल पहले एक राजा ने
यह मंदिर बनाने का किया विचार।
मूर्ति बनाने के लिए चुना
एक निपुण शिल्पकार।
शिल्पकार पत्थर ढूँढने
इसी जगह आया।
इतने पत्थर देखकर
हमसे बतियाया।
उसने हमसे कहा :
“एक पत्थर की है मुझे जरूरत।
क्या तुममें से कोई
बनना चाहेगा मूरत।
उसने कहा कि यदि तुममें
से कोई मूरत बन जाएगा।
तो यश, सम्मान के साथ
पूजन भी पाएगा।
यश और सम्मान से
सभी को था प्यार।
शिल्पकार की मीठी बातें सुनकर
सभी हो गए तैयार।
तब शिल्पकार ने निकाला
हथौड़ा और छेनी।
और बोला इसके लिए तो पड़ेगी
कड़ी परीक्षा देनी।
कहने लगा - “मैं तुम्हारे शरीर पर इनसे
काफी मार लगाऊँगा।
काफी कष्ट देने के बाद तुम्हें
मूरत मैं बनाऊँगा।”
इस दौरान शायद खतरे में
पड़ जाएगी तुम्हारी जान।
या हो सकता है, हो जाए
तुम्हारा शरीर लहुलुहान।
इन कड़े शब्दों को सुनकर
सभी के हौसले बिखर गए।
केवल दस को छोड़कर
बाकी सारे मुकर गए।
जब पहले पत्थर को
छेनी से पड़ी मार।
तो उसने पहले वार के बाद
ही कर दिया इंकार।
एक ही चोट में पत्थर
था खून में सना।
उसको देख, एक को छोड़,
बाकी सब ने कर दिया मना।
उस एक मूरत ने शिल्पकार से कहा -
“तुम मुझे जितना चाहो मारो।
पर मेरे गुणों को उभारो
और मेरी खामियां सुधारो।
मैंने सोच लिया है कि
कष्ट का विष पीना है।
और मंदिर में
मूरत बनकर जीना है।
शिल्पकार ने उस पर बहुत चोट किए,
पर वो अटल रहा।
यही कारण था कि हम में से
केवल वही सफल रहा।
पहले कुछ मार से ही
वह मूरत बन गया।
फिर काफी मार से
खूबसूरत बन गया।
हमने अपने कदम पीछे ले लिए थे,
इसलिए पीछे रह गए।
वह हिम्मत से खिल गया
इसलिए आगे गया।
यही कारण है कि लोग
मुझ पर पाँव लगाते हैं।
और उसके पाँव पर
शीश झुकाते हैं।
इतना कहकर ही पत्थर की
आवाज़ बंद हो गयी।
और मेरी जिज्ञासा, प्रश्नोत्तर से
स्वच्छंद हो गयी।
मुझे तब समझ में आ गया कि
जिनमें हिम्मत और हौसला प्रचुर होती है।
जीवन में उनकी
जीत जरूर होती है।
उस पत्थर की कहानी ने मेरे
दिलोदिमाग पर ऐसा असर किया,
कि मैं बिना पूजा किए ही
वापस लौट गया।
मैंने समझ लिया कि
लोभ और लालच में, पूजा है बेकार।
जो मेहनत और हिम्मत करेगा,
उसी का जीवन होगा साकार।
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
06:14 PM
13/03/2014
शब्दार्थ :
मूरत - Statue / Sculpture
परिणाम - Result
इक्यावन - Fifty One
किस्म - Type
भेदभाव - Discrimination
किस्सा - Story
निपुण - Dexterous (skilled)
शिल्पकार - Sculptor
बतियाना - To talk
लहुलुहान - Covered with blood
मुकरना - To deny
खामियां - Flaws
अटल - Firm
जिज्ञासा - Curiosity
स्वछंद - Free
प्रचुर - Copious / Sufficient
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