Skip to main content

एक आखिरी सीख


एक आखिरी सीख 
Art By : Shashank Shekhar Barik 
Shot By : Preet Tripathy 

एक कहानी सुनाता हूँ 
जिसमें अलग ही है भाव। 
जहाँ यौवन के जोश और 
अनुभव में हुआ टकराव। 

एक बार की बात है, 

एक पिता को अपने बेटे को 
सौपना था व्यापार। 
कुछ शिक्षा देने के बाद ही 
देना था कार्यभार।

पिता ने सीखा दी बेटे को 
सारी कूटनीति। 
बस बेटे के पास नहीं थी,
अनुभव की अनुभूति। 

पहली और आखिरी बार 
बाप - बेटे साथ करने निकले व्यापार। 
बिल्कुल अलग थे 
दोनों के उम्र, दोनों के विचार। 

सारा सामान लेकर निकल पड़े 
सुबह के पहले पहर में। 
धन कमाने निकल पड़े,
गाँव से शहर में। 

दोनों चल रहे थे खेतों से 
सुबह - सुबह की ओस में। 
बेटा, पिता के आगे चल रहा था 
यौवन के जोश में। 

रास्ते में कई जगह, 
बहुत से निर्जन प्रांत थे। 
पर पिता पीछे - पीछे गहरी सोच में, 
सागर की तरह शांत थे। 

शहर अभी दूर था, अभी उन्होंने 
आधा ही तय किया था रास्ता। 
कि पहली बार आए बेटे की 
हालत हो गई खस्ता। 

चलते - चलते उन्हें रास्ते में 
मिला एक तबेला। 
जहाँ एक आदमी बेच रहा था घोड़े, 
पर था बिल्कुल अलबेला। 

घोड़ों को देखकर 
बेटे की आँखें चमकी। 
टूट चुके बेटे के तन पर 
ऊर्जा की बिजली दमकी। 

घोड़ेवाला घोड़े की 
कर रहा था गिनती। 
तभी बेटे ने बाप से 
दो घड़ी खरीदने की, की विनती। 

बेटा कहता है :-
अगर दो घोड़े ले लें तो 
आसान हो जाएगा हमारा काम। 
इस थक चुके शरीर को, 
मिल जाएगा कुछ आराम। 

पिता ने कहा :-
काम और आराम 
नहीं है हमारा विषय। 
मुसीबत यह है कि जेब में केवल 
दो सौ हैं रुपए। 

घोड़े होते हैं काफी महँगे, 
इस पर भी दिमाग दौड़ाओ। 
एक घोड़े का दाम है कितना, 
ये तो पहले पूछ कर आओ। 

बेटा जाता है, पूछ कर आता है और पिता को बतलाता है :-

पिता जी सब कुछ अच्छा होता है, 
जब करने जाओ कोई काम नेक। 
घोड़े काफी सस्ते हैं, 
सौ रुपए में एक।

पिता ने कहा :-
नहीं बेटे, हम नहीं लेंगे, 
घोड़े के दाम हैं काफी अधिक। 
अभी घोड़े ले लें तो, 
होगा वो मूर्खता का प्रतीक। 

ये सुन बेटे का लाल चेहरा 
और लाल हो जाता है। 
धूप में चलते चलते बेटा 
और बेहाल हो जाता है। 

किसी तरह बाप बेटे 
शहर पहुँच जाते हैं। 
फिर दिन भर मेहनत करके 
खून पसीना बहाते हैं। 

शाम तक बेटा 
समझ लेता है पूरा व्यापार। 
मिल कर दोनों कमा लेते हैं, 
पूरे एक हज़ार। 

शाम को बाप - बेटे वापस 
गाँव की ओर बढ़ते हैं। 
दिन की कमाई के बाद दोनों 
काफी खुश दिखाई पड़ते हैं। 

वापस लौटते समय रास्ते में पड़ता है, 
घोड़े का वही तबेला। 
जहाँ बचे दो घोड़ों के साथ 
घोड़ेवाला था अकेला। 

तबेला देखकर निराशा, 
बेटे के मन को घेर लेता है। 
घोड़ों को देखकर बेटा 
अपना मुँह फेर लेता है। 

दोनों पहुँचते हैं 
तबेले के करीब। 
और हो जाता है
कुछ अजीबो-गरीब। 

अब घोड़ों को देख कर 
पिता की आँखें रही थी चमक। 
चेहरे पे हँसी, मुख पर रौनक, 
लग रहे थे सकारात्मक। 

पिता खुद ही 
चल कर जाता है। 
और घोड़ों के दाम 
पूछ कर आता है। 

पहले बेटा हुआ 
थोड़ा सा भ्रमित। 
पिता को तबेले तक जाते देख 
रह गया आश्चर्यचकित। 

घोड़ेवाला घोड़े की कीमत 
अब दो गुना बताता है। 
फिर भी पिता, दो घोड़े खरीद 
चार सौ रुपये चुकाता है। 

इस समय पर बेटे का गुस्सा 
पहुँच जाता है चरम पर। 
बेटे को विश्वास नहीं होता 
अपने पिता के करम पर। 

थोड़े समय बाद बेटा 
खो देता है अपना होश। 
आखिरकार फूट पड़ता है, 
बेटे का आक्रोश। 

बेटे के मन में था, 
बहुत ज्यादा बवाल। 
आखिर बेटा पूछ पड़ा, 
पिता से एक सवाल। 

बेटे ने कहा :-
सुबह मैंने आपके सामने 
कितने हाथ - पाँव जोड़े। 
फिर भी आपने कहा कि 
बहुत महँगे हैं घोड़े। 

सुबह ही आप अगर 
ले लेते ये घोड़ा। 
तो पैसे भी हम लोगों को 
चुकाना पड़ता थोड़ा। 

पिता हैरान नहीं था 
बेटे के हाल पर। 
इसलिए मुस्कुराया वो 
बेटे के सवाल पर। 

पिता कहता है :-
बेटा, किताबी ज्ञान सिर्फ 
जानकारी दे जाता है। 
पर जीवन का असली ज्ञान
सिर्फ अनुभव ही कराता है। 

सस्ते घोड़े खरीदने में, 
हम सुबह घोड़े ले लेते तो, 
हमें चुकाने पड़ जाते, 
पूरे रुपये दो सौ। 

सुबह अगर गवा देते हम 
व्यापार के लिए कंचन। 
तो बिलकुल नहीं बच पाता 
हमारे पास जरूरी मूलधन। 

तब हमारा हाल
हो जाता कुछ ऐसा। 
कि खुद खाने और घोड़े को खिलाने 
के लिए भी नहीं होता पैसा। 

बेटा, सोचो अपने दूर दृष्टि 
पर करके इजाफा। 
ऐसे में क्या कर पाते हम 
हज़ार रुपए का मुनाफा। 

अगर उस गलती का काँटा 
हमारे पैरों में गड़ जाता, 
तब वो सस्ता घोड़ा भी 
हमें महँगा पड़ जाता। 

वापसी में मैंने अगर चार सौ रुपये 
खर्च कर के घोड़े लेने की ठानी। 
क्यूँकि हज़ार रुपए जेब में होने पर 
हमें नहीं होती कोई हानि। 

घोड़े पर आगे चलता बेटा 
अचानक रुक जाता है। 
बेटे का गुस्से से भरा चेहरा 
अब शर्म से झुक जाता है। 

पहले बेटा, पिता को 
दोषी रहा था मान। 
लेकिन अब जाग उठा, 
उसके मन में परस्पर सम्मान। 

बेटे के मन में होती है 
पछतावे की रचना। 
आक्रोश में आने के लिए, 
बेटा करता है क्षमा याचना। 

तब बेटे को माफ कर पिता कहता है :-
हालत जितनी भी हो भीषण। 
पहले करना तुम 
हर घटना का विश्लेषण। 

जीवन में लेना हो कोई भी फैसला 
या करना हो कोई भी काम। 
पहले समझ लेना, किए आगाज़ से 
क्या हो सकता है अंजाम। 

बेटे की झुकी आँखें देख, 
पिता दे देता है अपने सर का भार। 
कहता है, आज से तुम्हें सौपता हूँ,
मैं अपना यह व्यापार। 

बेटा तब पिता के पाँव छूता है 
करता है जब आखिरी सीख का सामना। 
दिल से बेटे को आशीर्वाद देकर
पिता करता है मंगलकामना। 

दोनों के घर लौटने का 
अद्भूत था ये स्मरण। 
फर्क इतना था कि अब आगे था पिता 
और बेटा कर रहा था अनुकरण। 

दोनों घर लौटते हैं 
उसी पथ पर। 
मानो अर्जुन को उपदेश देते 
कृष्ण हो रथ पर। 

आकाश के तारे सम अब 
पिता की आँखें चमकी और 
बेटा था अँखियाँ मीचे। 
सूत के जैसे आगे थे पिता 
और बेटा उनके पीछे। 

मानो जीवन की नैया में, 
पिता हो एक माझी का प्रतीक। 
छोटे से खेल में बता दिया जिसने 
जीवन का “एक आखिरी सीख”
-दीपक कुमार साहू 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

तुम, मैं और दो कप चाय।

Art By : Amrita Patnaik  दिसम्बर की ठंड और मुझसे दूर तुम। मानो खुद के ही शहर में हो गया मैं गुम। आज भी हर सुबह, वो शाम याद आए, तुम, मैं और दो कप चाय । कड़कती ठंड में भी तुम जैसे, सुबह की हल्की धूप। ढलती शाम में भी निखरते चाँद का प्रतिरूप। वो सारे शाम, जो हमने साथ बिताए, तुम, मैं और दो कप चाय । साथ चलते - चलते उस शाम, तुमने चाय की फरमाइश की। और मेरे ना कहने की तो कोई गुंजाइश न थी। बहुत खूबसूरत लगती हो जब, होठों की मुस्कान, आँखों में आ जाए, तुम, मैं और दो कप चाय । बनते चाय में आता उबाल, जैसे तुम्हारे नाक पर गुस्सा। छोटी - मोटी नोकझोंक, वो भी हमारे प्यार का हिस्सा। तेरा मुझे डाँटना, आज भी मुझे रिझाए, तुम, मैं और दो कप चाय । दोनों हाथों से चाय का गिलास पकड़कर, तुम्हारा वो प्यार से फूँक लगाना। उन प्यारी - प्यारी अदाओं से दिल में मीठा हूँक उठाना। फिर गिलास को चूमती वो गुलाबी होंठ, हाय!!!! तुम, मैं और दो कप चाय । हर चुस्की पर सुकून से तेरा, वो आँखें बंद कर लेना। और खुली आँखों से तुम्हें तकते - तकते मेरा जी भर

मेरे सपनों का भारत...

मेरे सपनों का भारत Art By Ananya Behera Drawn By : Anwesha Mishra कल रात को मैंने एक सपना देखा। सपने में वतन अपना देखा। मैंने देखा कि भारत बन गया है विकासशील से विकसित। जहाँ बच्चे से लेकर बूढ़े सभी थे शिक्षित। लोग कर चुका कर अदा कर रहे थे अपना फर्ज़। और काले धन से मुक्त होकर भारत पे नहीं था करोड़ों का कर्ज़। मेरे सपने में तो भारत अमेरिका के भी विकास के करीब था। उस भारत में, हरेक के पास रोज़गार और कोई नहीं गरीब था। जहाँ हर ओर मज़बूत सड़क, ऊँची इमारत और खेतों में हरयाली थी पर्याप्त। जहाँ विज्ञान का विकास और सर्वश्रेष्ठ थी यातायात। जहाँ उच्चतम तकनीकी विकास और विकसित था संचार। जहाँ नेता भलाई करते थे और शून्य पर था भ्रष्टाचार। मेरा सपना यहीं तक पहुँचा था कि हो गयी भोर। मेरी नींद टूट गई सुनकर गली में एक शोर। गली में कोई ऐसा गर्जित हुआ। कि स्वप्न को छोड़, वास्तविक भारत की ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। इस शोर ने मुझे देर से सोने की दे दी थी सजा। मैंने खिड़की खोलकर देखा कि शोर की क्या थी वजह? मैंन

THE XL GIRL

  There are a thousand thoughts cramming my mind And you in all of them, the only constant. Your thoughts have left such a deep impression Nothing can cure me, no ANOVA, no regression My brain has torn apart and fallen aside Giving my heart a free hand to commit the crime Yes, love is a crime after all that has happened, All those sleepless nights, all that pain, all those yowls. I learned no lesson; I am the worst of all.   I try staying away from you, but somehow, I get closer. I try to stop thinking about you, but the desires get deeper. I keep watching you during classes by pinning in Zoom And leave only when a question comes from the Prof, Boom!! I have become your virtual slave, a slave who was not hired. And I wear that badge on my shoulders; God knows what transpired The elegance in your gait and your baleful smile, Have turned me totally imbecile. The warmth in your looks, the feeling of comfort The calmness in your attitude and the bewi