आज फिर ये सावन बरस रहा है…
Drawn By : Amrita Pattnaik |
Art By : Ayush Sinha |
आज फिर ये सावन
बरस रहा है।
दिल तेरे दीदार को
तरस रहा है।
जब पहली दफा तुम्हें देखा था
वो अकेली अंधेरी रात थी।
मैं छतरी तले अकेला था,
तुम्हें भिगो रही बरसात थी।
जब बारिश के उस बूँद ने तुम्हारी
पलकों से उतरकर लबों को छुआ।
ना जाने उस सावन से
मेरे दिल को ईर्ष्या क्यूँ हुआ?
तुम्हारे गाल चूमती और
परेशान करती लटें।
माथे पर थी शिकन और
दुपट्टे में सिलवटें।
बारिश में तुझे भीगते हुए
मैं देख ना पाया।
पास जाकर तेरे हाथों में
वो छाता थमाया।
एक छाता तले
तू अमीर, मैं गरीब।
अकेले सड़क में हम दोनों
इतने ज्यादा करीब।
शायद तभी मुझे मेरी
मर्यादा ने जगाया।
तेरे हाथों में छाता देकर
मैं बारिश में लौट आया।
बरसते सावन से भी
तुम्हीं ने बचाया।
पास आकर उसी छाते से
मुझपर छाया पहुँचाया।
मुझ जैसे फकीर के
पास थी अप्सरा।
काँच का दिल लिए
पत्थरों से डरा।
तेरे दिल के करीब मेरा दिल
ज़ोरों से धड़ककर।
सावन में पानी - पानी
हुआ मैं सड़क पर।
आँखे नीची कर के
जब मैं शर्माया।
तब तेरा चेहरा
ज़ोरों से खिलखिलाया।
तेरे हँसने से हँस उठी
ये पूरी कायनात।
ठाना मैंने तू बनेगी
मेरी शरीक-ए-हयात।
प्रीत की ये उड़ान
पांखों से खूब हुई।
शहर पानी में,
तुम मेरी आँखों में डूब गयी।
आज फिर ये सावन
बरस रहा है।
दिल तेरे दीदार को
तरस रहा है।
सबके सामने जब किया प्रकट
हमने अपना प्यार।
विरुध्द हो गए हमारे प्रति
हम दोनों के परिवार।
बड़े ऊँचे महल में रहती तू
बड़ी ऊँची मिली मुझको हार
ईटों की नहीं, नोटों की थी,
फांँद ना पाया वो दीवार।
मैं गरीब था इसीलिए
मेरी मात और शय हो गई।
एक अमीर घराने में
तेरी शादी तय हो गई।
पर मैं अब भी था
तुझ पर फिदा।
फिर बुलाया तूने चार बजे
कहने मुझे अलविदा।
खुद को व्यस्त रख
पल पल काटना भी एक सजा था।
सूरज ढल गया पर मेरी घड़ी में
चार नहीं बजा था।
तेरी अमीरी तले मेरी
मुहब्बत झुक गयी थी।
ज़िन्दगी तो जिंदगी
घड़ी भी रुक गई थी।
मैं फिर भी मिलने
गया भागा भागा,
रोते हुए इस किस्मत पर
मैं अभागा।
वहाँ तू तो नहीं मिली पर,
एक न्योता मिला मेरे नाम।
क्या निर्मल हृदय के प्यार का
ये होना था अंजाम?
Drawn By : Ananya Behera |
आज तेरे पिता ने ये शहर सजाया,
नहीं माने वो थोड़े में।
सुंदर सजाया होगा सहेलियों ने
तूझे शादी के जोड़े में।
जब देखी होगी तूने
आईने में अपनी सूरत।
जरूर महसूस हुई होगी
तूझे मेरी जरूरत।
आखिरी झलक देखने को तेरी
ख्वाहिश में चला गया।
कोई आँसू देख ना ले
इसलिए बारिश में चला गया।
जानता हूँ तूने आज मेरा
सारा ख़त जलाया होगा।
कहीं ना कहीं मेंहदी में
मेरा नाम छिपाया होगा।
हाँ तेरे बिना अपनी
ज़िन्दगी का अंजाम सोच रहा हूँ।
तू मेहंदी में, मैं हाथों की
लकीरों में तेरा नाम खोज रहा हूँ।
तेरे आँसू मेहंदी में गिरे
और मेरे गिरे जाम में।
आज हम भी शामिल हो गए
शराबियों के नाम में।
शराब पीकर नाचा तेरे
बारात में, मैं परवाना।
शायद इसे ही कहते हैं -
“बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना”
चूँकि बड़े शोर से वहाँ
पटाखे फूट रहे थे।
किसी ने नहीं सुना
दो दिल टूट रहे थे।
नाचते हुए तेरे घर पहुँचा
जहाँ रोशनी नहीं तम था।
सबके चेहरे पर देखा
छाया हुआ मातम था।
अंदर जाकर देखा तो तू
इस दुनिया से मुख मोड़ गयी थी।
जहर की आधी शीशी ही
अपने पीछे छोड़ गयी थी।
शायद हमारे प्यार पर
कोई श्राप रहा था।
मैं पागल अपने प्यार के
मौत पे नाच रहा था।
बाकी बचे जहर पर सिर्फ
मेरा ही अधिकार था।
तुझसे मिलने को मेरा
सबसे सुलभ संचार था।
मेरे आँसू जहर में गिरे
जहर को भी जल कर दिया।
आधी शीशी विष ने
प्रेम को मुकम्मल कर दिया…
जीतेजी न इससे ज्यादा
इंतज़ार होगा।
दोनों जहां में कहीं तो
तेरा दीदार होगा।
आज फिर ये सावन
बरस रहा है।
दिल तेरे दीदार को
तरस रहा है।
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
12:03:45 AM
29/06/2015
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