बस मैं और तुम
मेरा जीवन एक ठहरा तालाब था,
फिर तेरी इक मुस्कान ने ऐसा कंकड़ मारा।
सोचे समझे बिना ही जाना,
मैंने अपना दिल हारा।
काश उन्हीं तरंगों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
जब यूँही गुनगुनाती हो तुम
क्यूँ लगता है “काश मैंने संगीत सीखी होती”
जो शायरी तुझे पसंद आती है,
क्यूँ कहता हूँ “काश मैंने लिखी होती”
काश उन्हीं शब्दों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
क्यूँ तेरे नज़रअंदाज़ करने पर
मेरा मन तड़पता है।
सीने पर हाथ रखा तो पता चला
कि मेरा दिल भी धड़कता है।
काश उन्हीं धड़कनों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
तू जब साथ होती है, लगता है
हम कश्मीर की वादियों में कहीं हैं।
क्यूँ तुझे ना देखूँ तो लगता है
कि सुबह हुई ही नहीं है।
काश उन्हीं वादियों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
दिल को पतंग सी ढील देता हूँ,
फिर ना जाने क्यूँ खींच लेता हूँ।
क्यूँ तेरे सामने जुबां नहीं खुलती
पर अकेले में तेरा नाम चीख लेता हूँ।
काश उन्हीं खामोशियों में
हो जाएँ गुम
तुझे बिन बताए, तेरे संग सजाया
एहसास का एक ख्वाब है।
“क्यूँ पास जा कर दे ना पाया उसे”
माँगता जवाब वो टूटा गुलाब है।
काश उन्हीं एहसासों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
कहने को तो वो इक इंसां है
इस जहां के लिए।
पर पूरा जहां है
मुझ एक इंसां के लिए।
काश इन्हीं इंसानों में से
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
आज समझ में आया, आखिर क्यूँ
लोग समंदर किनारे वक़्त ज़ाया करते हैं।
एक तरफा प्यार वो रेत का महल है
जो अक्सर टूट जाया करते हैं।
काश उन्हीं घरौंदों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम।
सब कुछ होना और सब कुछ का होना
दो अलग बात है…
किसी का होना और किसी का हो जाना
दो अलग बात है…
काश इन्हीं बातों में
हो जाएँ गुम
बस मैं और तुम…
बस मैं और तुम…
-दीपक कुमार साहू
-Deepak Kumar Sahu
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