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छठ महापर्व

Art By : Amrita Patnaik 

छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी में होती है। चार दिन बाद कार्तिक शुक्ल सप्तमी को समाप्त होती है। सबसे पहले घर की पूरी साफ सफाई होती है। घर को पूरी तरह सजाया जाता है। और मांसाहारी खानपान इस दौरान पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। सप्तमी को “नहाए खाए” पर्व पालित किया जाता है। इस दिन छठ व्रती नहा धोकर, पूरी साफ सफाई का खयाल रखते हुए खाना बनाती है और पूजा के बाद ही खाना खाया जाता है। इस दिन खाने में चावल दाल और लौकी की सब्जी बनाई जाती है। दाल भी विशेषकर चना दाल जिसमें लौकी डालकर पकाया जाता है। इसी दिन से व्रत शुरू हो जाता है क्यूँकि छठ व्रती को इसी दिन से लहसून, टमाटर, मसाले इत्यादि खाने की मनाही होती है।

दूसरे दिन “खरना” का पर्व मनाया जाता है। इस दिन छठ व्रती पूरे दिन का व्रत रखती है। अन्न - जल का त्याग कर पूरे दिन वे उपवास रखती हैं। सुबह से ही छठ व्रती प्रसाद पकाती हैं। प्रसाद पकाने हेतु “गैस चूल्हा” का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि लकड़ी चूल्हा का इस्तेमाल होता है। प्रसाद के रूप में खीर और रोटी पकाई जाती है। प्रसाद के रूप में खीर और रोटी पकाई जाती है। नमक मसाले का उपयोग पूर्णतः निषेध रहता है। प्रसाद पकाने के बाद गोसाई पूजन होता है। गोसाई कुल देवता होते हैं जिनके लिए घर का एक कोना आरक्षित रखा जाता है। जिस कमरे में खरना का पूजन होता है वहाँ जूता पहन कर आना मना होता है। उस कमरे में चिल्लाना, कुछ और खानपान करना मना होता है। उस कमरे में चिल्लाना, कुछ और खानपान करना मना होता है। शाम को पूजा के वक़्त छठ व्रती कमरा बंद कर के अकेले पूजन करती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान खुद आकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद चढ़ाने के लिए छठ व्रती अलग अलग केले के पत्ते पर खीर और रोटी रखती है। हर रोटी में सिंदूर से वो स्वस्तिक का चिन्ह बनाती है। और हर केले के पत्ते के ऊपर वो दीपक जलाती है। यह दीपक जीवन का प्रतीक होता है। पूजा समाप्त होने के बाद छठ व्रती दरवाजा खोलती है और घर के सभी सदस्य भीतर जाकर पहले गोसाई को दंडवत प्रणाम करते हैं। हर केले के पत्ते पर खीर, रोटी और केला होता है जिसके ऊपर पूजा के समय अगर बत्ती जलाया गया होता है। यही प्रसाद छठ व्रती भी ग्रहण करती है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के लिए आसपास के पड़ोसी एवं रिश्तेदारों को भी बुलाया जाता है।

ठीक अगले दिन सूर्य को पहला अरघ दिया जाता है। इस दिन छठ व्रती उसी लकड़ी चूल्हे पर विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाती है जिसमें मुख्य रूप से ठेकुआ, प्रिकिया, इत्यादि शामिल होता है। छठ व्रती को प्रसाद बनाने के लिए दूसरी स्त्रियाँ भी सहायता करती हैं। हर चीज़ में साफ सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है, उसके बाद इन प्रसाद को डाला में रखा जाता है। हर प्रकार का फल जैसे केला, अमरूद, बड़े संतरे, बिना छिले नारियल, सेब, पानी फल, मूली, गन्ना, हल्दी (पौधे सहित) डाला में रखा जाता है। सभी ठेकुआ, फल पर सिंदूर और हल्दी का तिलक किया जाता है। इन सब फलों को और प्रसादों को सूप में रखा जाता है और सूप पर भी हल्दी और सिंदूर से तिलक किया जाता है। सभी सूपों पर ठेकुआ, मूली, हल्दी का पौधा, नारियल, गन्ना, दीपक, आदि रखा जाता है। घर में जितने पुरुष सदस्य होते हैं या जितनी मन्नतें मांगी गयी होती है, उतने सूप डाले में रखा जाता है। डाले को एक सफेद धोती से ढक कर, सिर पर रखकर, नंगे पाँव घाट तक पैदल लेकर जाया जाता है। दोपहर तीन से चार बजे तक घाट पहुँच जाते हैं क्यूँकि ज्यादा विलंब करने पर घाट पूजा के लिए जगह नहीं मिलती छठ व्रती एक नई साड़ी पहनती है जिसे “अखरा साड़ी” भी कहते हैं। इस साड़ी में कोई भी काला धागा नहीं होता। छठ व्रती भी उपवास में पैदल ही घाट तक आती हैं। आते वक़्त हाथ में छठ व्रती एक लोटा रखती है जिसके ऊपर धूप जलता है। और हल्का हल्का धुँआ उठ रहा होता है। डाला में से सूपों को निकालने से पहले घाट को पानी से साफ किया जाता है। उसके बाद एक साफ धोती को घाट पर बिछाया जाता है। फिर डाला को खोलकर सभी सूप को सूर्य की ओर रखा जाता है। हर सूप में घी के दीपक जलाए जाते हैं जब पानी उनके कमर के पास पहुँच जाता है तब वो अपना पल्लू अपने सिर पर रखती है। सहायक महिलाएँ छठ व्रती को सिंदूर लगाती है। यह सिंदूर नाक से शुरू होकर पूरे माँग तक जाती है। इसके बाद छठ व्रती दोनों हाथ जोड़कर डूबते सूर्य की ओर प्रार्थना करने लगती है। इसी जल में डुबकी लगाकर अपने मन का वरदान माँगती हैं। जब सूरज डूबने लगता है तब सूप को एक - एक कर छठ व्रती के हाथ में रखा जाता है और छठ व्रती पूरे सूप को सूर्य को समर्पित करती है। इसे पहला अर्घ्य कहा जाता है। बाकी सभी सदस्य पानी में उतर कर सूप पर जल चढ़ाते हैं। सभी सूपों का अर्घ्य देने के बाद। अर्घ्य समाप्त होने के बाद घाट पर ही छठ व्रती वस्त्र बदलती हैं। आसपास के सहायक महिलाएँ उन्हें चारों तरफ़ से घेरती हैं। ताकि छठ व्रती आराम से साड़ी बदल सकें। उसके बाद सूप को वापस डाले में डाला जाता है और धोती से ढक कर सिर पर लाद कर वही पुरुष उसे पैदल घर की ओर ले आता है जो उसे घाट तक लेकर गया था। बाकी सभी सदस्य छठ व्रती के साथ पैदल ही घर लौटते हैं। उस रात सभी जल्दी सो जाते हैं क्यूँकि अगली सुबह जल्दी उठ कर भोर के अर्घ्य के लिए फिर से घाट जाना होता है। रात भर भूखी प्यासी छठ व्रती सोने के लिए खाट या पलंग का का इस्तेमाल नहीं कर सकती। उन्हें ज़मीन पर चढ़ाई पर रात गुज़ारनी होती है। वो सोने के लिए तकिया का भी उपयोग नहीं कर सकती। दाँत साफ़ करने के लिए दातुन का प्रयोग किया जाता है, ब्रश का नहीं।

अगली सुबह सभी रात ढाई से तीन बजे उठ जाते हैं। और पिछले दिन की ही तरह डाले में फल, प्रसाद, दीपक डालते हैं। किंतु पिछले शाम को चढ़ाए प्रसाद, फल इत्यादि को निकालकर अलग रख दिया जाता है। और सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नए फल, ठेकुआ, इत्यादि रखा जाता है। सभी फल और ठेकुए पर हल्दी और सिंदूर से तिलक किया जाता है। सभी उसी प्रकार पैदल घाट पर जाते हैं। फिर से छठ व्रती पानी में जाती है और सूर्य निकलने तक फिर से प्रार्थना करने लगती है। ठंड के मौसम में पानी में आधा दुबकर ठंडी हवाओं के बीच काँपते हुए ऐसा कठोर तप करना अत्यंत कठिन होता है। हम सब पूर्व दिशा की ओर हाथ जोड़े, सूर्य के उगने का प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। सूर्य को संध्या और भोर का अर्घ्य देते वक़्त महिलाएं सूर्य के लिए लोकगीत गाती हैं जो सुनने में अति मनमोहक होती हैं। सूर्य के उगने के बाद फिर से सूप को छठ व्रती के हाथ में दिया जाता है। और वे उसे सूर्य को अर्पित करती हैं। फिर से इस समय घर के सभी सदस्य सूर्य और सूप को जल व दूध चढ़ाते हैं। अर्घ्य के बाद सूप को डाले में डाल लिया जाता है और छठ व्रती साड़ी बदलती है। फिर जाने से पहले घाट पूजन किया जाता है जिसमें पाँच मुठ्ठी मिट्टी लेकर एक पंगत में रखकर चना के साथ घाट पूजा जाता है। उसके बाद आरती की जाती है। जिसमें हर कोई भाग लेता है। इसके बाद व्रत सम्पन्न होता है। व्रत सम्पन्न करने वाली छठ व्रती को पवित्र महिला माना जाता है। हम सब छठ व्रती के पाँव छूते हैं और उनसे प्रसाद माँगते हैं। मैंने बड़ी उम्र की महिलाओं को भी छोटी उम्र के छठ व्रती के पाँव छूकर आशीर्वाद लेते देखा है। छठ व्रती भी उन्हें प्रसाद देकर, सिंदूर लगाकर आशीर्वाद देती हैं। खाली पैर घर लौटते वक़्त कई व्यक्ति छठ व्रती से प्रसाद माँगते हैं। घर पहुँचकर प्रसाद खाकर छठ व्रती अपना व्रत तोड़ती है। इसी के साथ छठ पूजा का समापन होता है। हालाँकि ये सुहागनों का पर्व है किन्तु पुरुष भी धोती पहनकर इस पर्व का पालन कर सकते हैं। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के अलावा भारत के कई और हिस्सों में छठ पूजा मनाई जाती है। ये पर्व विश्व भर में प्रसिद्ध है। कई मुस्लिम भी छठ पूजा मनाते हैं।एक तरह से मन की इच्छा पूरी करने के लिए, अपनी कृपा बनाए रखने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने का पर्व है। लेकिन सही मायनों में ये पर्व नारी के अगाध प्रेम, निस्वार्थ भावना और धीरज का प्रतीक है।
-दीपक कुमार साहू
25th October 2018
11:10:08 PM

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