कभी घर से अकेले बाहर निकलना,
कुछ मील अपने पैरों पे चलना,
उस वक़्त, गौर ये तुम करना,
न हो पैसे तुम्हारे पास, और
न उस वक़्त तुम्हें, अपने पापा के फ़ोन से है डरना।
हवाई चप्पलों के साथ,
लोगों की भीड़ के बीच,
धूल भरे रास्तों में,
अपनों से मीलों दूर,
असलियत की सिख सीखना
समझना और सीखाना,।
चलते रहना, फिर भूख जब लगे,
एक पल ठहर कर इस भीड़ को परखना,
कुछ अगर समझ आये उस पल,
तो सेहम कर ,खुद को समेट लेना,।
फिर लौट आना वापस , अपने घर
ज़िन्दगी क्यों है,
उस सफर के बाद, शायद तुम्हें पता चले,
और
तुम क्यों हो, क्या हो,
और किस लिए हो , ये भी जान लोगे,
और फिर देखना, तुम बदलोगे,
तुम जरूर बदलोगे,
पहले खुद को एक बार जरूर आजमा लेना!
Writer-
Shiva rajak
21 nov 2018
7:47pm.
Nice one shiva. It shows truth of life.
ReplyDeleteI have written this poem , thinking ,what actually the reason is behind all our confusions, and i found,
ReplyDeleteHunger ,and the way its encriptured , if u wanna change,
TAKE IT UNTILL U MAKE OUT OF IT!
Awsm Shiva......It reflects the real value of life...
ReplyDeleteAwsm Shiva......It reflects the real value of life...
ReplyDeleteThis is the truth happens every moment in the life of a person.
ReplyDeleteGood one 😊 shiva.
ReplyDelete