Art By : Ananya Behera |
“मर्द” - ये शब्द बोलने में, लिखने में या सुनने में जितना भारी भरकम प्रतीत हो रहा है, वास्तव में ये इसके बिल्कुल विपरीत है। ईश्वर ने एक बार सबसे कमजोर दिल बनाया, सबसे ज्यादा भावुक था वो दिल जिसमे अगाध प्रेम था। किंतु ये नाज़ुक सा दिल कहीं टूट ना जाए इसी कारण ईश्वर ने उसे एक शक्तिशाली काया में कैद कर दिया। कमजोर दिल और मजबूत काया की इसी विषम मेल का नाम है - “मर्द”।
उसी दिल की रक्षा करने हेतु पुरुष बाहरी अवारण का सहारा लेता है ताकि उनकी ये कमज़ोरी बाकी दुनिया से छिपी रह सके। अपनी इसी कमज़ोरी को दुनिया से छिपाते, ये जानते हुए कि वो खुद कितना कमजोर है - ये चीज़ें उसमें आक्रोश भर देती है।
मनुष्य ये जानता है कि “क्रोध” पर नियंत्रण कितना आवश्यक है। क्रोध हमेशा इंसान को विपत्ति की और ढकेल देता है। ये जानते हुए भी मर्द, अपने क्रोध को काबू में नहीं रख पाता और जीवन में प्रति-पल मुसीबत की ओर अग्रसर रहता है।
अगर पृथ्वी पर केवल मर्द ही होते तो शायद फिर ये पृथ्वी ही न होती। मर्द - जो जेहनी तौर पर कमजोर होते हैं, वास्तव में बहुत कमजोर, उन्हें चाहिए होती है शक्ति, धैर्य, समझ, प्यार, समर्थन एवं साथ। इसीलिए ईश्वर ने नारी का निर्माण किया। वो शक्ति जो मर्द की ताकत बन सके। वो जो मर्द के हर सवाल का जवाब बन सके। वो जो उसके गुस्से को एक सही दिशा प्रदान कर सके। वो जो मर्द के जीवन को लक्ष्य प्रदान कर सके। एक ऐसा दिल जिससे मर्द अपनी हर बात बे-झिझक कह सके। और वो दिल होता है स्वयं शक्ति का प्रतिरूप - नारी का। भले ही वो पुरुष दुनिया की नज़र में दोषी हो, खलनायक हो, उसे कोई चाहिए, जो गर्व से उसे अपना नायक कह सके। वो जो उसके जीवन में प्रेरणा बनकर आए। वो जो जीवन के हर चुनाव में अपनी समझ बुझ से मर्द को सही सलाह दे सके। जीवन के सफर में चलते हुए कोई हो जो उसका संबल बने। कोई हो कि जिससे बातें करते हुए मंज़िल की ओर कदम अपने आप बढ़ते जाएँ।
जब कामयाबी के शिखर से मर्द का पैर फिसले, जब पूरी दुनिया खरी - खोटी सुना जाए, जब हर इंसान उसे गलत समझे, जब वो खुद की आँखों में गिर जाए और जब भय के मारे ज़मीन में वो घुटनों के बल बैठा हो और उसकी पलकें तक ना उठ पा रहीं हो तब उसे कोई चाहिए जो उसकी ओर हाथ बढ़ाए और उस हार के अंधकार में उसे सीने से लगा ले। तब जब वो फूट - फूट-कर रोएगा, उसके वक्ष पर शीश रख कर जब अपनी बाहों को कसेगा और तब जब वो नारी उसके सर पर हाथ फेरेगी, उसे अगाध प्रेम से सींचेगी तभी जाकर वो अगली सुबह अकेला पूरी दुनिया के खिलाफ लड़ने को खड़ा हो सकेगा।
नारी इसके बदले कुछ नहीं चाहती, कुछ नहीं माँगती। चाहती है तो बस थोड़ा सा सम्मान। पर वो भी उसे नहीं मिलता। वो पुरुष के हर अत्याचार को सह लेती है। उसके किए जाने वाले क्रोध को भी अपने ऊपर ले लेती है। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार गंगा मनुष्यों के पाप को अपने में समा लेती है। किसी ने सच ही कहा है कि नारी को समझना बहुत कठिन है परंतु इसका प्रयास तो हमें ही करना होगा। नारी को यथोचित सम्मान हमारे समाज में नहीं मिलता, इसके बावजूद वो अपने दायित्वों से मुख नहीं मोड़ती। इसी कारण मेरी नज़र में नारी महान है। शास्त्रों में नारी को पुरुष का पूरक कहा गया है। पुरुष का आधा भाग नारी होती है। पर क्या हम नारी को वो सम्मान देते हैं? ये सवाल हमें खुद से पूछना होगा। पौरुष का सही अर्थ समझना होगा।
नवरात्र में देवी के नौ रूपों का केवल पूजन मात्र से समाज की दशा सुधारनेवाली नहीं है। बल्कि देवी के उन नौ रूपों का सम्मान करना हमें सिखाना होगा जिसका एहसास हमारे जीवन में नारी के द्वारा ही संभव हो पाता है। हमें ये समझना होगा कि पौरुष का असल अर्थ दमन करना नहीं बल्कि सम्मान करना होता है। मेरी नज़र में “मर्द” की यही सही परिभाषा है।
-दीपक कुमार साहू
16/10/2018
07:46:00 PM
All expressions have been beautifully penned down.
ReplyDeleteThanks bhai 😊😊
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