गोवर्धनधारी सुख समृद्धी से भरा ऐसा एक नगर था, जिसमें गोवर्धन नामक एक डाकू का डर था, एक दिन सेनापति सेना लेके उसके पीछे पड़ जाता है, घोड़े पर पीछा करते, नगर में भगदड़ मच जाता है। पास में पंडित परशुराम की सत्संग हो रही थी, जान बचाते डाकू की साहस भंग हो रही थी, घोड़ा छोड़ डाकू सत्संग में घुस जाता है सर पर कपड़ा डाल श्रद्धालुओं के बीच में छुप जाता है। पंडित जी कृष्ण की लीला गाते हैं, कान्हा की बाल कहानी सबको सुनाते हैं, आठ बरस का किशन गाय चराने जाता है, पीताम्बर में सुसज्जित बालक मुरली बजाता है, सोने की करधनी, बाजूबंध और सोने का मुकुट मोर पंख लगाए हुए और लेके हाथ में लकुट मनमोहन अपने सखा के साथ गायों को चराता है ऐश्वर्य सा तेज लिए वो मंद मंद मुस्काता है। सोना सोना सुनकर डाकू के कान खड़े हो जाते हैं ऐसा धनी बालक सोच, दोनों आँख बड़े हो जाते हैं सत्संग के बाद चुपके से डाकू पंडित के पास जाता है, अपनी धारदार चाकू वो पंडित के गले पर ठहराता है। मुरख डाकू कहता है कि जान तुम्हें है...
Image Generated by Meta AI रहे दुनिया में कहीं भी पर इस दिन संग आते हैं बिखरे बिखरे मोती छठ के धागे में बंध जाते हैं... ये चार दिन साथ पूरा परिवार होता है, कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... भोरे भोर नहाकर सब कद्दू भात खाते हैं, सात्विक भोजन का अर्थ सारी दुनिया को समझाते हैं, साफ़ हमारा अच्छी तरह घर द्वार होता है, कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... लकड़ी के चूल्हे पर खरना का प्रसाद बनाते हैं बच्चे बूढे रोटी खीर, केले के पत्ते पर खाते हैं दिनभर की भूखी व्रती का ये एकमात्र फलाहार होता है कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... अगले दिन, बाँस की टोकरी में सारे फल सजाते हैं विश्व-प्रसिद्ध, सबसे स्वादिष्ट, ठेकुआ हम पकाते हैं... पाँव में अलता और सिंदूर का श्रृंगार होता है कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... मैथल - मगही में सभी लोकगीत गाते हैं अमीर - गरीब नंगे पाँव चलके घाट आते हैं सर पर रखा दउरा जिम्मेदारी का भार होता है कुछ ऐसा पावन छठ का त्योहार होता है... फल फूल, धूप कपूर, घाट पर शोभ...