तुम मिलने आई नहीं
आईने के सामने कई दफा
प्यार का इजहार किया था
आज के दिन के लिए मैंने कैसे
खुद को तैय्यार किया था
ये बात मैंने किसी को बताई नहीं...
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
सोचा था मैंने कि आज तुमको
माता के दरबार लेकर जाऊँगा,
चरणों में गिरकर माता के मैं
अपने हिस्से का प्यार लेकर आऊंगा
क्या मैं इतना बुरा हूँ? मुझमें कोई अच्छाई नहीं?
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
तुम्हें मेरे शहर की नदी, झरने
और ठंडी हवा से मिलाने की जरूरत है
उन्हें भी तो दिखाऊँ कि
कोई उनसे भी खूबसूरत है
और इक गाने की फर्माइश थी जो तुमने सुनाई नहीं
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
इक अच्छी फिल्म लगी है
और दो टिकटें मेरे पास हैं,
आज शाम हम वहाँ जाते
जहाँ की पानीपुरी बहोत खास है
अभी तो तुमने खाई है पिपलानी की मिठाई नहीं
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
मैंने तुम्हारे जन्मदिन का
केक मंगाकर रखा था
एक छोटा सा तोहफा भी
मैंने पैक कराकर रखा था
तुमने वादा भी तो नहीं किया था! कैसे कहूँ कि निभाई नहीं
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
माँ पूछती रह गई कि
तेरी पसंद से कब मिलवाएगा
मेरे अरमान पूरा करके
शादी का जोड़ा कब सिलवाएगा
मेरे घर के दहलीज पर लक्ष्मी ने कदम उठाई नहीं
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
पूरी होते होते हो ना पाई
फिर से मेरी खुशहाली रह गई
मेरे बाइक की पिछली सीट
अबकी बार भी खाली रह गई
बुरा लगा, पर तुमको मैंने जताई नहीं
दिन ढल गया तुम मिलने आई नहीं...
-दीपक कुमार साहू
13th April 2025
03:02:59 PM
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