तुम सपनों की दुनिया में रहती हो ना?
मैं जब सो जाता हूँ, तुम जगती हो ना?
एक ही समय पर होता है, मैंने किया है गौर,
मेरे शहर की रात और तेरे शहर की भोर।
हज़ारों मील की दूरी 4 फीट पे आ के रुक गयी,
तेरी आँखों ने मेरी आँखों को देखा और मेरी आँखें झुक गई
कितनी प्यारी जोड़ी... थी हमारी बेजोड़,,
तू मेरे मन का डोर, मैं तेरे मन का डोर।
छिपा के पर्स की अंदर वाली जेब में,
हमारा प्यार रखा था तेरी टूटी हुई पाजेब में।
बहुत सी चीजें चुराई है मैंने, ख़ैर… छोड़,,
मैं तेरे दिल का चोर, तू मेरे दिल की चोर।
उस शाम को मिलना कहुँ या बिछड़ना
ये आज भी मुश्किल है समझना।
बदल गए थे हम, बदल गया था दौर,,
वो कोई और मैं कोई और…
तुमने आखिरी बात क्या कही थी याद नहीं
मैं खड़ा ही रह गया, तेरे जाने के बाद वहीं...
वो शाम मुझे सच, तोड़ गया बड़ी ज़ोर
वो भीतर का था शोर या बाहर का था शोर?
हम मिले तो यूँ मिले की जैसे
31 दिसम्बर मिलती है पहली जनवरी से।
फिर आहिस्ता आहिस्ता चल पड़े नए सफ़र की ओर
वो कहीं और... मैं कहीं और…
-दीपक कुमार साहू
16th January 2022
11:51 PM
Wah wah kya baat hai bhai. Lajawab shayari. That old Deepak is back
ReplyDeleteThanks bhai😇
Delete💜💜💜💜😍😍
ReplyDeleteThanks bhai 😇
Delete