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Shayari No 88

कागज़ की कश्ती थी पर, 

लहरों से टकरा गया... 

टूटा दिल उसका जब, 

साहिल ने ठुकरा दिया... 



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तुम, मैं और दो कप चाय।

Art By : Amrita Patnaik  दिसम्बर की ठंड और मुझसे दूर तुम। मानो खुद के ही शहर में हो गया मैं गुम। आज भी हर सुबह, वो शाम याद आए, तुम, मैं और दो कप चाय । कड़कती ठंड में भी तुम जैसे, सुबह की हल्की धूप। ढलती शाम में भी निखरते चाँद का प्रतिरूप। वो सारे शाम, जो हमने साथ बिताए, तुम, मैं और दो कप चाय । साथ चलते - चलते उस शाम, तुमने चाय की फरमाइश की। और मेरे ना कहने की तो कोई गुंजाइश न थी। बहुत खूबसूरत लगती हो जब, होठों की मुस्कान, आँखों में आ जाए, तुम, मैं और दो कप चाय । बनते चाय में आता उबाल, जैसे तुम्हारे नाक पर गुस्सा। छोटी - मोटी नोकझोंक, वो भी हमारे प्यार का हिस्सा। तेरा मुझे डाँटना, आज भी मुझे रिझाए, तुम, मैं और दो कप चाय । दोनों हाथों से चाय का गिलास पकड़कर, तुम्हारा वो प्यार से फूँक लगाना। उन प्यारी - प्यारी अदाओं से दिल में मीठा हूँक उठाना। फिर गिलास को चूमती वो गुलाबी होंठ, हाय!!!! तुम, मैं और दो कप चाय । हर चुस्की पर सुकून से तेरा, वो आँखें बंद कर लेना। और खुली आँखों से तुम्हें तकते - तकते मेरा जी भर

जरूरी था...?

जज सहाब की मोहर ने मुझे  अकेले रोता छोड़ दिया...  साथ जन्म के रिश्ते को  कानूनी पंडितों ने तोड़ दिया...  कैसे बाटेंगे वो दिन और रात  जो तुमने हमने साथ गुजारे...  ठीक है सारे अच्छे दिन तुम्हारे  और बाकी बुरे दिन हमारे....  चलो उज्जवल भविष्य तुम्हें मुबारक  वो बिता हुआ अतीत मेरे हिस्से है...  तुम्हारी मानो तो तुम सही, मेरी मानो तो मैं  किरदार सभी समान लेकिन अलग अलग किस्से हैं...  ईश्वर की कृपा से बस एक बेटा है  जो तुम्हें मुझसे ज्यादा चाहता है,  माँ - माँ की लत लगाए  तुम्हारे पल्लू से बंधा रहता है,  उसे सोमवार से शनिवार तुम रख लेना,  इतवार मुझे दे देना बस... बेटे से रोज मिलना भी मना है,  सरकारी फरमान ने यूँ किया बेबस...  सारे बर्तन चूल्हा चौकी तुम ले जाना, खाना बनाना तो मैंने कभी सीखा ही नहीं.. जीवन में तुम्हारे आने के बाद,  रसोई का चेहरा मैंने देखा ही नहीं..  हर महीने तुम्हें पैसे भिजवा दूँगा  पर जेब से मेरी अब पैसे कौन निकालेगा... दूध का खर्चा, धोबी का बकाया,  इन सब का हिसाब कौन संभालेगा...  शादी का जोड़ा तुम लेकर जाना पर  शादी की एल्बम मत ले जाना...  तुम्हें तो पता है मुझे कितना पसंद

मेरे सपनों का भारत...

मेरे सपनों का भारत Art By Ananya Behera Drawn By : Anwesha Mishra कल रात को मैंने एक सपना देखा। सपने में वतन अपना देखा। मैंने देखा कि भारत बन गया है विकासशील से विकसित। जहाँ बच्चे से लेकर बूढ़े सभी थे शिक्षित। लोग कर चुका कर अदा कर रहे थे अपना फर्ज़। और काले धन से मुक्त होकर भारत पे नहीं था करोड़ों का कर्ज़। मेरे सपने में तो भारत अमेरिका के भी विकास के करीब था। उस भारत में, हरेक के पास रोज़गार और कोई नहीं गरीब था। जहाँ हर ओर मज़बूत सड़क, ऊँची इमारत और खेतों में हरयाली थी पर्याप्त। जहाँ विज्ञान का विकास और सर्वश्रेष्ठ थी यातायात। जहाँ उच्चतम तकनीकी विकास और विकसित था संचार। जहाँ नेता भलाई करते थे और शून्य पर था भ्रष्टाचार। मेरा सपना यहीं तक पहुँचा था कि हो गयी भोर। मेरी नींद टूट गई सुनकर गली में एक शोर। गली में कोई ऐसा गर्जित हुआ। कि स्वप्न को छोड़, वास्तविक भारत की ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ। इस शोर ने मुझे देर से सोने की दे दी थी सजा। मैंने खिड़की खोलकर देखा कि शोर की क्या थी वजह? मैंन