जज सहाब की मोहर ने मुझे
अकेले रोता छोड़ दिया...
साथ जन्म के रिश्ते को
कानूनी पंडितों ने तोड़ दिया...
कैसे बाटेंगे वो दिन और रात
जो तुमने हमने साथ गुजारे...
ठीक है सारे अच्छे दिन तुम्हारे
और बाकी बुरे दिन हमारे....
चलो उज्जवल भविष्य तुम्हें मुबारक
वो बिता हुआ अतीत मेरे हिस्से है...
तुम्हारी मानो तो तुम सही, मेरी मानो तो मैं
किरदार सभी समान लेकिन अलग अलग किस्से हैं...
ईश्वर की कृपा से बस एक बेटा है
जो तुम्हें मुझसे ज्यादा चाहता है,
माँ - माँ की लत लगाए
तुम्हारे पल्लू से बंधा रहता है,
उसे सोमवार से शनिवार तुम रख लेना,
इतवार मुझे दे देना बस...
बेटे से रोज मिलना भी मना है,
सरकारी फरमान ने यूँ किया बेबस...
सारे बर्तन चूल्हा चौकी तुम ले जाना,
खाना बनाना तो मैंने कभी सीखा ही नहीं..
जीवन में तुम्हारे आने के बाद,
रसोई का चेहरा मैंने देखा ही नहीं..
हर महीने तुम्हें पैसे भिजवा दूँगा
पर जेब से मेरी अब पैसे कौन निकालेगा...
दूध का खर्चा, धोबी का बकाया,
इन सब का हिसाब कौन संभालेगा...
शादी का जोड़ा तुम लेकर जाना पर
शादी की एल्बम मत ले जाना...
तुम्हें तो पता है मुझे कितना पसंद है
उन फोटो में तेरा मुस्का के लजाना...
शादी के पहले के सारे खत ले जाना पर
तुम्हारा दिया कलम मेरे पास रहने दो...
"अगर तुम वो ना कहते, मैं तुमसे ये ना कहती"
याद करने के लिए जीवन में कुछ काश रहने दो...
पिछली सालगिरह की घड़ी तुम्हें लौटा दूँगा,
गुज़रते वक़्त को देखने का मुझे तलब नहीं...
अंधेरे कमरे में मौत सा सन्नाटा,
वक़्त पे घर लौटने का कोई मतलब नहीं...
तुम्हें अब कोई और पसंद आ जाए तो बेशक शादी कर लेना
"मुझे बड़े काम हैं, मैं नहीं आ पाऊँगा"
मुझे शादी में मत बुलाना क्यूँकि
तुम्हें पता है ये ऊपर लिखा झूठ मैं नहीं बोल पाऊँगा...
तुम्हें तो पता है मुझे भिंडी कितनी पसंद है
एक आखिरी बार तुम्हारे हाथों का स्वाद चखना है...
खाने में नमक कम, शक्कर ना बराबर,
ये सब मुझे अब खुद याद रखना है?
हर वक़्त सिर्फ काम ही काम,
काम को सौतन बोल के कोसेगा कौन मुझे?
सुबह शाम फोन कर के
वक़्त पर गोलियाँ लेने को टोकेगा कौन मुझे?
पता है कुछ दिन नींद नहीं आएगी तुम्हें,
मेरी बाहों में सर रख के, सोने की जो आदत है तुम्हारी...
ये घर, ये गाड़ी, ये ज़मीन जायदाद,
मेरा कुछ भी नहीं, ये बदौलत है तुम्हारी...
बाकी सामानों के साथ मेरा शरीर भी यहाँ पड़ा रहेगा,
तुम्हारे जाने के बाद ये घर एक गोदाम होगा...
लेकिन एक वादा है, हमारे अलग होने के बाद भी
इस घर के दरवाजे पर मेरा और तुम्हारा ही नाम होगा...
मेरे मरने पर तुम आओ या ना आओ ये तुम पर है
लेकिन बेटे को मेरे चिता पर आग देने से रोकना मत...
काग़ज़ के एक टुकड़े ने हमें अलग जरूर किया है पर
जरूरत के समय मुझे फोन करने से पहले सोचना मत...
सोचता तो मैं रहता हूँ हर रोज कि
तुमने जब जब जो माँगा मैंने तुम्हें दिया,
फिर उस दिन गुस्से में तुमने तलाक़ माँगा
और मैंने मना क्यूँ नहीं किया...?
बात कर के हम सुलझा सकते थे,
मैं कोई पराया थोड़ी था?
अपने दिल पर हाथ रख के पूछो
क्या तलाक़ लेना जरूरी था...?
-दीपक कुमार साहू
28th July 2024
03 : 05 : 38 AM
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