शर्मा जी का लड़का शर्मा जी के लड़के को हर कोई काबिल बताता है, ना किसी से उसका नाता है, ना किसी से बतियाता है... बचपन से हँसमुख लड़का किसी बड़े इमारत में बैठे, आज हर पल घबराता है, डर डर के मुस्कुराता है... लंबी जिम्मेदारियाँ लेने की उसमें हिम्मत नहीं, वो छोटे पौधे लगाता है पर पेड़ नहीं लगाता है... अब छोटी खुशियाँ उसे खुश नहीं करती, वो खामियाँ ज्यादा गिनाता है, शुक्र कम मनाता है... आने वाले कल की फ़िक्र में जागते-जागते, वो देर तक सो जाता है पर सपने नहीं सजाता है... उलझा है अपने नौकरी में कुछ इस तरह कि खाना जरूर खाता है पर स्वाद नहीं बताता है... जीवन की इस होड़ से निकलने की चाह में, वो फॉरम तो भर आता है पर सवाल नहीं लगाता है... गर्मी की धूप और बारिश की बूँद उसे याद करती है, वो पतंग नहीं उड़ाता है, अब छाता ओढ़ के आता है... त्योहारों की खुशियाँ देखे बरसों बीत गए, वो घर तो नहीं जाता है, पर पैसे खूब कमाता है... जैसे किसी को उम्र कैद की सजा मिली हो, वो ऑफिस से लौट के आता है और...
The 'Poet' made the 'Poem' &
The 'Poem' made the 'Poet'