शब्दार्थ महताब - चाँद, रुखसार - गाल, चारा-साज़ - डॉक्टर, जॉन - Jaun Elia कुछ भी नहीं ईद का महताब उसके रुखसार के अलावा कुछ भी नहीं और मेरे प्यार में, इंतज़ार के अलावा कुछ भी नहीं... उसे देखा तो जाना कि, परियों की दुनियाँ सच्ची है,, मैं तो मानता था, ब्राह्मण में इस संसार के अलावा कुछ भी नहीं... वो एक बार देख लेती है और मैं मर जाता हूँ,, आँखें उसकी सच बोलूँ, एक हथियार के अलावा कुछ भी नहीं... सुबह होती है और मैं सपने भूल जाता हूँ,, याद बस उसकी पायल की झनकार के अलावा कुछ भी नहीं... मेरे दिल के घर को बस तुमने ही हथियाया है,, और मैं तेरे दिल के किराए-दार के अलावा कुछ भी नहीं... तू कहानी है मेरी... तू मेरी जिंदगी है... मैं तेरी जिंदगी में एक किरदार के अलावा कुछ भी नहीं... उसे जो पसंद है वो तोहफे महंगे आते हैं,, और मेरे जेब में रुपये चार के अलावा कुछ भी नहीं... मुझे खुद से मेहनत करना है और जग में आगे बढ़ना है,, विरासत में मिला मुझे संस्कार के अलावा कुछ भी नहीं... मैंने भी कमाएं हैं जिंदगी में कुछ ऐसे रिश्ते,, कि दौलत के नाम पर दो यार के अलावा कुछ भी नहीं... स...
The 'Poet' made the 'Poem' &
The 'Poem' made the 'Poet'