रोज कहकर जाते हैं, आज जल्दी घर आ जाएँगे, रोज सुबह 9 से रात के 10 बजे जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... ये पता है कि पीछे से वार किसने किया है, फिर भी चुप चाप ज़ख्म सीए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... रोने का मन कर रहा है हमारा, पर आँसू के घूंट पीए जा रहे हैं,, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... अब खुद से प्यार नहीं रहा पर, दूसरों के खातिर सजे जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... एक सच है जो हम शुरू से जानते हैं, फिर भी झूठे वादे किए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... ये किताब भी हम पढ़ेंगे नहीं, ना जाने फिर भी क्यूँ लिए जा रहे हैं? ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... जानते हैं हम तैय्यार नहीं हैं, फिर भी हर इम्तेहान दिए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... एक जिंदगी है जो हम जीना चाहते हैं, एक जिंदगी हम जिए जा रहे हैं, ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं... ऐ जिंदगी तेरे मजे नहीं आ रहे हैं… -दीपक कुमार साहू...
The 'Poet' made the 'Poem' &
The 'Poem' made the 'Poet'