जी कर कोई मर जाता है... प्यार का रंग महबूब पे कुछ ऐसा कर जाता है, हर बार उसमें हमको नया गुलिस्तां नजर आता है... होने को तैय्यार वो वक्त नहीं लगाती, हँसती है वो और चेहरा संवर जाता है... कहते हैं लोग कि जिंदगी तेज चलती है, वो आती है सामने और आलम ठहर जाता है... कान पकड़ते हैं लोग उस्तादों का नाम लेके तेरा नाम लेता हूँ और हाथ दिल पर जाता है... कृष्ण के मुख में होगा ये ब्रह्मांड मगर, आँखों में तेरी मुझे दुनियाँ नज़र आता है... रातों को जगना इतना भी मुश्किल नहीं, मैं तकता हूँ तेरी तस्वीर, और सहर हो जाता है... दोस्तों को मालूम है मुझको कैसे छेड़ा जाए, वो लेते हैं नाम तेरा, मेरा चेहरा निखर जाता है... मैं भी अपने चाँद को तारे देना चाहता हूँ, पर टूटता है तारा तो टूटकर किधर जाता है? वो तो मुझको कहती है कि "बड़े बदमाश हो गए हो" पर मैंने सुना था मोहब्बत कर लो, बंदा सुधर जाता है... बाजार में उसके पीछे, कभी इस दुकां कभी उस दुकां जैसे माँ का पल्लू पकड़े बच्चा, कभी इधर जाता है, कभी उधर ...
The 'Poet' made the 'Poem' &
The 'Poem' made the 'Poet'